अष्टवक्र महागीता भाग 4 साहजता में तृप्ति भाग-Ashtavakra Mahageeta Bhag – 4: Sahajta Mein Tripti by osho
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अष्टावक्र महागीता भाग 4: सहजता में तृप्ति” ओशो की एक अद्वितीय पुस्तक है, जो अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद पर आधारित है। इस पुस्तक में आत्मज्ञान, सहजता, और आंतरिक शांति के विषय में गहन चर्चा की गई है। ओशो की व्याख्या हमें जीवन की सहजता में तृप्ति और ध्यान की गहराई को समझने का मार्ग दिखाती है।
About the Author
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
u003cstrongu003eअष्टावक्र महागीता भाग 4: सहजता में तृप्तिu0022 किसने लिखी है?u003c/strongu003e
यह पुस्तक ओशो द्वारा लिखी गई है, जिसमें उन्होंने अष्टावक्र और राजा जनक के संवाद की व्याख्या की है। इसमें आत्मज्ञान, सहजता, और तृप्ति के माध्यम से जीवन को गहराई से समझने का मार्ग बताया गया है
u003cstrongu003eसहजता में तृप्तिu0022 का क्या मतलब है?u003c/strongu003e
सहजता में तृप्तिu0022 का मतलब है जीवन को उसकी स्वाभाविकता के साथ स्वीकार करना और संतुष्ट रहना। जब हम जीवन के हर अनुभव को सहजता से लेते हैं, तो हम आंतरिक शांति और आत्मिक संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं। ओशो के अनुसार, यही आत्मज्ञान का मार्ग है
u003cstrongu003eओशो ने इस पुस्तक में क्या सिखाया हैu003c/strongu003e?
ओशो ने सिखाया है कि सहजता और तृप्ति ही आत्मज्ञान का मार्ग है। उन्होंने बताया है कि जीवन की स्वाभाविकता को स्वीकार करना, माया के भ्रम से मुक्त होकर आंतरिक शांति की ओर बढ़ना, ही सच्ची तृप्ति है
u003cstrongu003eक्या इस पुस्तक का अध्ययन जीवन में बदलाव ला सकता है?u003c/strongu003e
हां, अगर इस पुस्तक में दी गई शिक्षाओं का पालन किया जाए, तो यह व्यक्ति के जीवन में गहरे बदलाव ला सकती है। यह आत्मिक शांति, संतुष्टि, और ध्यान की ओर प्रेरित करती है, जिससे जीवन की दिशा बदल सकती है।
u003cstrongu003eक्या u0022अष्टावक्र महागीता भाग 4u0022 से आत्मिक शांति प्राप्त हो सकती है?u003c/strongu003e
हां, इस पुस्तक में आत्मिक शांति प्राप्त करने के मार्ग बताए गए हैं। ओशो ने सहजता, ध्यान, और आत्मज्ञान के माध्यम से जीवन में शांति और तृप्ति प्राप्त करने की दिशा में मार्गदर्शन दिया है।
u003cstrongu003eअष्टावक्र गीता का अध्ययन क्यों करें?u003c/strongu003e
अष्टावक्र गीता का अध्ययन आत्मा की गहन सच्चाइयों को समझने के लिए आवश्यक है। यह पुस्तक जीवन की माया से मुक्त होकर आत्मिक संतोष और तृप्ति प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है, जिसे ओशो ने सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है।
Additional information
Weight | 477 g |
---|---|
Dimensions | 20 × 20 × 4 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8184190034 |
Pages | 320 |
Format | Hard Bound |
Language | Hindi |
Publisher | Fusion Books |
ISBN 10 | 8184190034 |
यह गीता जनक और अष्टावक्र के बीच जरा भी विवाद नहीं है। …जैसे दो दर्पण एक-दूसरे के सामने रखे हों और एक-दूसरे के दर्पण में एक-दूसरे दर्पण की छवि बन रही हो। …दर्पण दर्पण के सामने खड़ा है। …जैसे दो जुड़वां, एक ही अंडे में पैदा हुए, बच्चे हैं। दोनों का स्रोत समझ का ‘साक्षी’ है। दोनों की समझ बिल्कुल एक है। भाषा चाहे थोड़ी अलग-अलग हो, लेकिन दोनों का बोध बिल्कुल एक है। दोनों अलग-अलग छंद में, अलग-अलग राग में एक ही गीत का गुनगुना रहे हैं। इसलिए मैंने इसे ‘महागीता’ कहा है। इसमें विवाद जरा भी नहीं है। …यहां कोई प्रयास नहीं है। अष्टावक्र को कुछ समझाना नहीं पड़ रहा है। अष्टावक्र कहते हैं और उधर जनक का सिर हिलने लगता है सहमति में। दोनों के बीच बड़ा गहरा अंतरंग संबंध है, बड़ी गहरी मैत्री है। इधर गुरु बोला नहीं कि शिष्य समझ गया।
ISBN10-8184190034 ISBN10-8184190034
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