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आत्म पूजा उपनिषद पार्ट-1 आत्म-साक्षात्कार के गूढ़ रहस्यों को सरल भाषा में समझाता है। यह ग्रंथ ध्यान, भक्ति और आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन देता है, जिससे साधक आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
आत्म पूजा उपनिषद का अध्ययन ध्यान, मनन, और शांति के साथ किया जाना चाहिए। इसे धीरे-धीरे पढ़ते हुए, आत्मचिंतन करते हुए और उसके विचारों को जीवन में आत्मसात करते हुए इसका वास्तविक लाभ उठाया जा सकता है।
नहीं, आत्म पूजा उपनिषद पढ़ने के लिए विशेष पूर्व ज्ञान आवश्यक नहीं है, लेकिन इसके विचारों को समझने के लिए आध्यात्मिकता में रुचि और खुला दृष्टिकोण होना चाहिए।
आत्म पूजा उपनिषद में आत्मा को परमात्मा का अंश माना गया है, और इसमें बताया गया है कि आत्मा के माध्यम से परमात्मा की अनुभूति की जा सकती है। आत्म-पूजा से व्यक्ति आत्मा की पवित्रता और दिव्यता को पहचान सकता है।
आत्म पूजा उपनिषद भारतीय उपनिषदों की परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि यह आत्म-पूजा और आत्म-ज्ञान के महत्व पर विशेष ध्यान देता है। यह व्यक्ति को आत्मा की पहचान के माध्यम से परम सत्य का अनुभव करने का मार्ग दिखाता है।
आत्म पूजा उपनिषद में ध्यान, आत्मचिंतन, और मानसिक शांति के अभ्यास पर जोर दिया गया है। इसमें विशेष रूप से आत्मा के प्रति समर्पण और ध्यान का महत्व समझाया गया है।
Weight | 550 g |
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Dimensions | 21.59 × 13.97 × 2.97 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8171826113 |
Pages | 184 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171826113 |
बुद्धत्व की प्रवाहमान धारा में ओशो एक नया प्रारंभ हैं, वे अतीत की किसी भी धार्मिक परंपरा या श्रृंखला की कड़ी नहीं हैं। ओशो से एक नये युग का शुभारंभ होता है और उनके साथ ही समय दो स्पष्ट खंडों में विभाजित होता है: ओशो पूर्व तथा ओशो पश्चात। ओशो के आगमन से एक नये मनुष्य का, एक नये जमात का, एक नये युग का सृजन हुआ है, जिसकी आधारशिला अतीत के किसी धर्म में नहीं है, किसी दार्शनिक विचार-पद्धति में नहीं है। ओशो सधे: स्नात धार्मिकता के प्रथम पुरुष हैं, सर्वथा अनूठे संबंध रहस्यदर्शी हैं। ISBN10-8171826113
Autobiography & Memories, Books
Business and Management, Religions & Philosophy