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ऋषि विश्वामित्र के समान मुझे और मेरे समय को भी श्रीराम की आवश्यकता है, जो इंद्र और रूढ़िबद्ध सामाजिक मान्यताओं की सताई हुई, समाज से निष्कासित, वन में शिलावत पड़ी, अहल्या के उद्धारक हो सकते जो ताड़का और सुबाहु से संसार को छुटकारा दिला सकते, मारीच को योजनों दूर फेंक सकते, जो शरभंग के आश्रम में ‘निसिचरहीन करौं महि का प्रण’ कर सकते, संसार को रावण जैसी अत्याचारी शक्ति से मुक्त करा सकते। किंतु वे मानव शरीर लेकर जन्में थे। उनमें वे सहज मानवीय दुर्बलताएं क्यों नहीं थी, जो मनुष्य मात्र की पहचान है? आदर्श पुरुष त्याग करते हैं, किंतु यह तो त्याग से भी कुछ अधिक ही था। जहां आधिपत्य की कामना ही नहीं थी। यह तो आदर्श से भी बहुत ऊपर मानवता की सीमाओं से बहुत परे कुछ और ही था। राम अपना तन अपनी इच्छा से निर्मित करते हैं, तभी तो माया को बांधकर, चेरी बनाकर लाते हैं। अष्टावक्र ने बताया, ‘मुक्तिमिच्छसि चेत्तात विषयान् विषवत्यज।‘ हे तात। यदि मुक्ति की इच्छा है, तो विषयों को विष के त्याग दें। कामना त्याग और मुक्त हो जा, आत्मा वही शरीर तो धारण करती है, जिसकी वह कामना करती है। शरीर तो हमारा भी निज इच्छा निर्मित ही है। बस आत्मा ने मन के साथ तादात्म्य कर लिया है। मन ने ढेर कामनाएं ओढ़ ली हैं, इंद्रिय सुख के सपने संजो लिए हैं। आत्मा ने उन्हीं कामनाओं की पूर्ति के लिए उपयुक्त शरीर धारण किए, जो सुख और दुख भोग रहा है। उन्हीं राम की कथा है- अभ्युदय जिसने पिछले तीस वर्षों से हिंदी के पाठक के मन पर एकाधिकार जमा रखा है।
पुस्तक Abhyudaya Ram Katha-II का परिचय:
रामायण की अनोखी व्याख्या:
धर्म और मर्यादा की शिक्षा:
संस्कृति और इतिहास की झलक:
राम कथा का महत्व:
पाठक इस पुस्तक को क्यों पढ़ें:
निष्कर्ष:
Weight | 0.575 g |
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Dimensions | 21.59 × 13.97 × 3.6 cm |
Author | Narender Kohli |
ISBN | 8128400274 |
Pages | 702 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
ISBN 10 | 8128400274 |
ISBN10-8128400274