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अजहुँ चेत गवार ओशो द्वारा लिखी गई एक गहन आध्यात्मिक पुस्तक है, जो जीवन की अज्ञानता से जागरूकता तक की यात्रा पर केंद्रित है। ओशो इसमें बताते हैं कि कैसे व्यक्ति अपनी चेतना को जागृत कर सकता है और भक्ति एवं ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
हाँ, इस वाक्य का उपयोग अक्सर नकारात्मक या आलोचनात्मक संदर्भ में किया जाता है, लेकिन यह संदर्भ के अनुसार हल्के-फुल्के या मजाकिया रूप में भी प्रयोग हो सकता है।
यह वाक्यांश भारतीय लोक साहित्य में अधिक प्रयोग होता है, खासकर ग्रामीण बोलचाल में। इसे प्रायः किसी के अज्ञान या लापरवाही पर टिप्पणी करने के लिए बोला जाता है।
बच्चों को यह समझाने के लिए इस वाक्य का उपयोग किया जा सकता है जब वे कोई गलती दोहराते हैं या कोई महत्वपूर्ण बात नहीं समझते। यह उन्हें याद दिलाने का एक तरीका हो सकता है कि वे अपनी लापरवाही पर ध्यान दें।
अजहुँ चेत गवार जैसे वाक्य संस्कृत साहित्य में नहीं होते हैं, लेकिन संस्कृत में ऐसे कई शबद और वाक्यांश होते हैं जो अज्ञान या मूर्खता को व्यक्त करते हैं।
इस वाक्यांश का उपयोग हिंदी साहित्य में आमतौर पर किसी पात्र के अज्ञान या उसकी लापरवाही को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से लोक साहित्य और कविता में प्रयुक्त होता है जहाँ पात्रों को समझाया जाता है या उनका मजाक उड़ाया जाता है।
इस वाक्य का अर्थ यह हो सकता है कि किसी व्यक्ति को कई बार सही सलाह देने के बाद भी वह समझने से बच रहा है, और अब यह स्थिति उन लोगों द्वारा कहे जाने पर इस्तेमाल हो सकती है जो सलाह देने के प्रयास में निराश हो जाते हैं।
Weight | 720 g |
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Dimensions | 21.6 × 14 × 3.41 cm |
Author | Osho |
ISBN | 9789350831946 |
Pages | 96 |
Format | Paper Back |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9350831945 |
प्रेम के अतिरिक्त कोई श्रवण नहीं है। तो यारी पहले बननी चाहिए। प्रेम पहले बनना चाहिए, तब ज्ञान। प्रेम के पीछे आता है ज्ञान। और जिसने सोचा कि ज्ञान के पीछे प्रेम आएगा, वह भूल में पड़ा। उसने बैल पीछे बांध दिए गाड़ी में। यह गाड़ी अब कहाँ जाएगी नहीं। प्रेम पहले आता है। भाव पहले आता है। ह्रदय पहले आता है—तब सिर। जिसने सोचा कि पहले सिर, फिर ह्रदय को ले आएंगे, वह कभी भी नहीं ला पाएगा। क्योंकि सिर तो ह्रदय के खिलाफ है और ह्रदय को कभी उभारने न देगा। सिर तो संदेह है। और ह्रदय है आस्था, श्रद्धा। तो सिर तो हजार उपाय करेगा संदेह खड़े करने के। सिर में तो संदेह ही लगता है। सिर से कभी श्रद्धा नहीं होती। श्रद्धा ह्रदय से होती है। सरलता चाहिए। विनम्रता चाहिए। अकड़ का अभाव चाहिए। प्रेम में पड़ने की हिम्मत चाहिए। ओशो पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
ISBN10- 9350831945
Business and Management, Religions & Philosophy
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