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आजादी की लड़ाई में रामप्रसाद बिस्मिल की एक अहम् भूमिका है उनके बलिदान को हमें और हमारे आने वाली पीढ़ी को कभी नही भूलना चाहिए उनकी कुरबानी हमारे लिए आजादी की लौ का काम करती है। जैसा कि हमें पता है बिस्मिल एक शायर अनुवादक कवि और साहित्यकार थे इसलिए इन्हें शायरी का भी शौक था इन्होने कई शेर अमर कर दिए जैसे एक यह है-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
ऊपर दिया गया शेर बिस्मिल अजीमाबादी का है लेकिन लोग रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से जानते हैं
अमर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह आत्मकथा दिसम्बर 1927 में गोरखपुर जेल में लिखी थी। उन्हें 19 दिसम्बर, 1927 को फांसी पर लटकाया गया था।
रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा काकोरी के शहीद के मुख्य शीर्षक के तहत गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा 1928 में प्रताप प्रेस, कानपुर से प्रकाशित की गई थी। आशा करता हूँ कि पाठकों को इनकी आत्मकथा से प्रेरणा मिलेगी और समय से मुठभेड़ करने की क्षमता मिलेगी।
Author | Ram Prasad Bismil |
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ISBN | 9789359645971 |
Pages | 96 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | |
ISBN 10 | 9359645974 |
आजादी की लड़ाई में रामप्रसाद बिस्मिल की एक अहम् भूमिका है उनके बलिदान को हमें और हमारे आने वाली पीढ़ी को कभी नही भूलना चाहिए उनकी कुरबानी हमारे लिए आजादी की लौ का काम करती है। जैसा कि हमें पता है बिस्मिल एक शायर अनुवादक कवि और साहित्यकार थे इसलिए इन्हें शायरी का भी शौक था इन्होने कई शेर अमर कर दिए जैसे एक यह है-
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
ऊपर दिया गया शेर बिस्मिल अजीमाबादी का है लेकिन लोग रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से जानते हैं
अमर शहीद रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ ने यह आत्मकथा दिसम्बर 1927 में गोरखपुर जेल में लिखी थी। उन्हें 19 दिसम्बर, 1927 को फांसी पर लटकाया गया था।
रामप्रसाद बिस्मिल की आत्मकथा काकोरी के शहीद के मुख्य शीर्षक के तहत गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा 1928 में प्रताप प्रेस, कानपुर से प्रकाशित की गई थी। आशा करता हूँ कि पाठकों को इनकी आत्मकथा से प्रेरणा मिलेगी और समय से मुठभेड़ करने की क्षमता मिलेगी।
ISBN10-9359645974