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अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति
अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति

Ashtavakra Mahageeta Bhag- IV Sahajta Mein Tripti (अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति)

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Ashtavakra Mahageeta Bhag- Iv Sahajta Mein Tripti (अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति)
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Osho
Ashtavakra Mahageeta Bhag- Iv Sahajta Mein Tripti (अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति)
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Ashtavakra Mahageeta Bhag- Iv Sahajta Mein Tripti (अष्टावक्र महागीता भाग 4 सहजता में तृप्ति)

अष्टावक्र महागीता भाग 4: सहजता में तृप्ति” में ओशो ने अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से जीवन के गहनतम प्रश्नों पर विचार किया है। इसमें सहजता, ध्यान, और आत्म-साक्षात्कार के गूढ़ रहस्यों का अनावरण किया गया है। ओशो ने इन श्लोकों को सरलता से समझाते हुए यह बताया कि कैसे व्यक्ति जीवन में सहजता से तृप्ति प्राप्त कर सकता है।

सहजता में तृप्ति: ओशो इस पुस्तक में इस बात पर ज़ोर देते हैं कि असली तृप्ति आत्मज्ञान से आती है, और यह तृप्ति केवल सहजता में पाई जा सकती है। जब व्यक्ति अपने असली स्वरूप को पहचानता है और स्वयं को अस्तित्व के साथ एकाकार करता है, तब ही उसे असली तृप्ति प्राप्त होती है।

अष्टावक्र के ज्ञान की सरलता: ओशो ने इस भाग में अष्टावक्र के उपदेशों को इस तरह से प्रस्तुत किया है कि वे कठिन नहीं बल्कि अत्यंत सरल प्रतीत होते हैं। यह भाग ध्यान, समर्पण, और आंतरिक शांति की दिशा में मार्गदर्शन करता है, जो किसी भी साधक के लिए गहराई से प्रेरणादायक है।

पुस्तक के बारे में

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

अष्टावक्र महागीता भाग 4 क्या है?

यह पुस्तक अष्टावक्र और जनक के संवादों पर आधारित है, जिसे ओशो ने अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से समझाया है। इसमें सहजता और तृप्ति के रहस्यों पर विचार किया गया है

सहजता से तृप्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है?

ओशो के अनुसार, सहजता का अर्थ है स्वाभाविक जीवन जीना, बिना किसी संघर्ष या बाधा के, और यही तृप्ति का स्रोत है।

अष्टावक्र का ज्ञान आज के युग में कैसे प्रासंगिक है?

अष्टावक्र का ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है क्योंकि यह आत्मज्ञान और ध्यान पर आधारित है, जो किसी भी युग में सत्य और शांति का स्रोत होते हैं।

अष्टावक्र महागीता पुस्तक में कौन से मुख्य विषय शामिल हैं?

मुख्य विषयों में ध्यान, सहजता, आत्म-साक्षात्कार, और तृप्ति के सिद्धांत शामिल हैं

ओशो ने अष्टावक्र महागीता पुस्तक में क्या सिखाया है?

ओशो ने बताया है कि असली तृप्ति केवल सहजता और आत्मज्ञान से प्राप्त हो सकती है, और इसका मार्ग ध्यान और आत्मनिरीक्षण से होकर जाता है।

Additional information

Weight 381 g
Dimensions 20.32 × 12.7 × 1.27 cm
Author

Osho

ISBN

8189605801

Pages

204

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Fusion Books

ISBN 10

8189605801

यह गीता जनक और अष्टावक्र के बीच जरा भी विवाद नहीं है। …जैसे दो दर्पण एक-दूसरे के सामने रखे हों और एक-दूसरे के दर्पण में एक-दूसरे दर्पण की छवि बन रही हो। …दर्पण दर्पण के सामने खड़ा है। …जैसे दो जुड़वां, एक ही अंडे में पैदा हुए, बच्चे हैं। दोनों का स्रोत समझ का ‘साक्षी’ है। दोनों की समझ बिल्कुल एक है। भाषा चाहे थोड़ी अलग-अलग हो, लेकिन दोनों का बोध बिल्कुल एक है। दोनों अलग-अलग छंद में, अलग-अलग राग में एक ही गीत का गुनगुना रहे हैं। इसलिए मैंने इसे ‘महागीता’ कहा है। इसमें विवाद जरा भी नहीं है। …यहां कोई प्रयास नहीं है। अष्टावक्र को कुछ समझाना नहीं पड़ रहा है। अष्टावक्र कहते हैं और उधर जनक का सिर हिलने लगता है सहमति में। दोनों के बीच बड़ा गहरा अंतरंग संबंध है, बड़ी गहरी मैत्री है। इधर गुरु बोला नहीं कि शिष्य समझ गया।

ISBN10-8189605801

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