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Ashtavakra Mahageeta Bhag V Sannate Ki Sadhna
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अष्टावक्र महागीता भाग 5 सन्‍नाटे की साधना-Ashtavakra Mahageeta Bhag-V Sannate Ki Sadhna

Original price was: ₹300.00.Current price is: ₹299.00.

अष्टावक्र महागीता भाग 5: सन्नाटे की साधना” में ओशो ने अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से शांति और मौन के महत्त्व पर गहन विचार किया है। इस भाग में ओशो ने सन्नाटे को साधना का महत्वपूर्ण साधन बताया है, जहां मौन के माध्यम से आत्मा की गहराई में प्रवेश किया जा सकता है। मौन में छिपी शक्ति और शांति को आत्मसात करके जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझा जा सकता है।

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सन्नाटे की साधना: ओशो ने सन्नाटे की साधना को ध्यान की एक उच्च अवस्था के रूप में प्रस्तुत किया है। इसमें व्यक्ति बाहरी शोर से मुक्त होकर अपने भीतर की यात्रा करता है। ओशो के अनुसार, जब मन सन्नाटे में स्थित हो जाता है, तभी आत्मज्ञान संभव हो पाता है।

अष्टावक्र के मौन का महत्व: ओशो इस पुस्तक में बताते हैं कि अष्टावक्र के उपदेशों का सार भी मौन में छिपा है। यह मौन न केवल शब्दों से बल्कि मन की चंचलता से भी परे है, जो आत्मज्ञान का मार्ग खोलता है।

About the Author

ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।

अष्टावक्र महागीता भाग 5 क्या है?

यह ओशो की व्याख्या है जिसमें अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से सन्नाटे और मौन की साधना पर प्रकाश डाला गया है।

ओशो ने सन्नाटे की साधना को कैसे समझाया है?

ओशो ने सन्नाटे को आंतरिक शांति और आत्मज्ञान का एक साधन बताया है, जिसमें व्यक्ति अपने मन को स्थिर करके आत्मा की गहराई तक पहुंचता है।

मौन और सन्नाटे का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

ओशो के अनुसार, मौन और सन्नाटा आत्मज्ञान के लिए आवश्यक हैं। ये साधक को बाहरी भ्रम से मुक्त करते हैं और आत्मिक शांति प्रदान करते हैं।

अष्टावक्र के उपदेश आज के समय में कैसे प्रासंगिक हैं?

अष्टावक्र के उपदेश आत्मिक शांति और ध्यान के माध्यम से आज भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि ये हर युग में शांति और तृप्ति का स्रोत होते हैं

ओशो के अनुसार ध्यान और सन्नाटे में क्या संबंध है?

ओशो का मानना है कि ध्यान के उच्च स्तर पर पहुंचने के लिए सन्नाटे का अभ्यास आवश्यक है, क्योंकि मौन में ही आत्मज्ञान प्राप्त हो सकता है।

अष्टावक्र और जनक के संवाद का इस भाग में क्या सार है?

इस भाग में उनके संवाद का मुख्य सार यह है कि सन्नाटे में ही वास्तविक शांति और आत्मिक तृप्ति पाई जा सकती है।

अष्टावक्र महागीता में मौन का महत्व क्या है?

मौन को आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया में सबसे प्रमुख साधन माना गया है, जो व्यक्ति को उसकी आत्मा से जोड़ता है।

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यह जो हवा में तुम्हारे आसपास उठा रहा हूँ, इसके लिए जरा तुम ऊँचे उठो! …जरा ऊँचे उठो! मैं जहाँ की खबर लाया हूँ, वहाँ की खबर लेने के लिए चिड़ बनो। थोड़े सिर को उठाओ! थोड़े सजग! मेरे साथ गुनगुनाना लो थोड़ा। जिस एक की मैं चर्चा कर रहा हूँ, उस एक की गुनगुनाहट को तुम में भी गूंज जाने दो। …और तब तुम्हें पता चलेगा कि जैसे खुल गई कोई खिड़की। और जिसे तुमने समझा था – सिर्फ एक विचार – वो विचार न था; वो ध्यान बन गया। और जिसे तुमने समझा था – सिर्फ एक सिद्धांत, एक शास्त्र – वो सिद्धांत न था, शास्त्र न था; वो सत्य बन गया। तो थोड़े उठो! थोड़े जगो! थोड़े सजग! …तुम मुझे पियो। तुम मेरे पास ऐसे रहो जैसे कोई फूल के पास रहता है। और मुझे वैसे सुनो जिसमें प्रयोजन का कोई भाव न हो। जो मुझे प्रयोजन से सुनेगा, वो चूकेगा। जो मुझे निःप्रयोजन, आनंद से सुनेगा…स्वागत: सुखाद तुलसी रघुनाथ गाथा …वही पा लेगा। उसके जीवन में धीरे-धीरे क्रांति घटनी शुरू हो जाती है। ISBN10-818960581X

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