अष्टावक्र महागीता भाग 6: ना संसार ना मुक्ति” में ओशो ने जीवन के दो महत्वपूर्ण पहलुओं—संसार और मुक्ति—की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी है। अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि असली मुक्ति संसार से भागने में नहीं, बल्कि संसार और मुक्ति दोनों से परे जाने में है। यह भाग जीवन के उच्चतम सत्य को समझने और दोनों से मुक्त होने की राह दिखाता है।
ना संसार ना मुक्ति: ओशो ने बताया कि जब व्यक्ति संसार और मुक्ति दोनों से परे जाता है, तभी उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। यह भाग व्यक्ति को इस भ्रम से मुक्त करता है कि संसार बंधन है और मुक्ति अंतिम लक्ष्य। असली मुक्ति दोनों से ऊपर उठने में है, जहां आत्मा अपनी असली स्थिति में स्थित होती है।
अष्टावक्र का दृष्टिकोण: ओशो इस पुस्तक में बताते हैं कि अष्टावक्र का दृष्टिकोण संसार और मुक्ति दोनों को एक भ्रम मानता है। अष्टावक्र के अनुसार, असली ज्ञान वह है जो इन दोनों के पार जाकर आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है
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ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
u003cstrongu003eअष्टावक्र महागीता भाग 6 क्या है?u003c/strongu003e
यह ओशो की व्याख्या है जिसमें अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से संसार और मुक्ति की पारंपरिक धारणाओं को चुनौती दी गई है
u003cstrongu003eओशो ने संसार और मुक्ति को कैसे समझाया है?u003c/strongu003e
ओशो ने बताया है कि संसार और मुक्ति दोनों ही भ्रम हैं, और असली मुक्ति इन दोनों से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार में स्थित होने में है।
u003cstrongu003eसंसार और मुक्ति का आध्यात्मिक महत्व क्या है?u003c/strongu003e
ओशो के अनुसार, संसार और मुक्ति दोनों ही सीमित अवधारणाएँ हैं, और आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को इनसे मुक्त होना चाहिए।
u003cstrongu003eअष्टावक्र का दृष्टिकोण आज के समय में कैसे प्रासंगिक है?u003c/strongu003e
अष्टावक्र का दृष्टिकोण आज भी उतना ही प्रासंगिक है क्योंकि यह व्यक्ति को भ्रम से मुक्त करके आत्मज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
u003cstrongu003eओशो के अनुसार संसार और मुक्ति में क्या अंतर है?u003c/strongu003e
ओशो ने समझाया कि संसार और मुक्ति दोनों ही बंधन हैं, और असली मुक्ति इनसे ऊपर उठकर आत्मज्ञान प्राप्त करने में है।
u003cstrongu003eअष्टावक्र और जनक के संवाद का इस भाग में क्या सार है?u003c/strongu003e
उनके संवाद का मुख्य सार यह है कि जीवन में न तो संसार से भागना आवश्यक है और न ही मुक्ति पाना, बल्कि इन दोनों से मुक्त होना ही असली ज्ञान ह