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अस्वीकृति में उठा हाथ” जीवन के उस क्षण की बात करता है, जब व्यक्ति अस्वीकृति या नकार का सामना करता है। ओशो के दृष्टिकोण से, यह नकारात्मकता केवल बाहरी परिस्थितियों का परिणाम नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर के असंतुलन का प्रतीक है। ओशो ने इस विचार को विस्तार से समझाते हुए बताया है कि अस्वीकृति को हमें केवल नकारात्मक रूप से नहीं देखना चाहिए। यह आत्मविकास और आंतरिक शक्ति को खोजने का एक अवसर हो सकता है।
अस्वीकृति का महत्व: ओशो बताते हैं कि जीवन में अस्वीकृति का सामना करना हमें अपने भीतर की कमजोरियों और डर से रूबरू कराता है। यह वह क्षण होता है, जब व्यक्ति अपने अहंकार और मानसिक बंधनों से बाहर निकल सकता है। अस्वीकृति को एक चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए, व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार और व्यक्तिगत विकास की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण: इस पुस्तक में ओशो ने बताया है कि अस्वीकृति का अनुभव हमें हमारे भीतर की ओर देखने और हमारी मानसिकता को बदलने की दिशा में प्रेरित करता है। यह अनुभव हमें मानसिक रूप से मजबूत बनाता है और हमें आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।
हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
ओशो ने बताया है कि अस्वीकृति को सकारात्मक रूप से स्वीकार करके और इसे आत्म-विकास का साधन मानकर ही हम इससे ऊपर उठ सकते हैं।
हां, अस्वीकृति में उठा हाथ समाजिक सशक्तिकरण और अस्वीकार के बावजूद संघर्ष करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करती है। यह पुस्तक यह दिखाती है कि समाज की अस्वीकृति का सामना करते हुए भी कैसे व्यक्ति अपनी पहचान और उद्देश्य को बनाए रख सकता है।
इस पुस्तक में लेखक ने अस्वीकृति के विभिन्न कारणों को स्पष्ट किया है जैसे सामाजिक भेदभाव, मानसिक अस्वीकृति, परिवारिक दबाव, और आर्थिक असमानता। इन कारणों के माध्यम से लेखक ने यह दिखाया है कि कैसे व्यक्ति इन समस्याओं का सामना करता है और उनसे कैसे उबर सकता है।
पुस्तक में पात्रों का अनुभव यह दर्शाता है कि अस्वीकृति से गुजरते हुए मानसिक तनाव, आत्ममूल्यता की कमी, और सामाजिक उपेक्षा जैसे पहलुओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, ये पात्र समय के साथ अपनी ताकत और आत्मविश्वास को ढूंढते हैं और अपनी अस्वीकृति से बाहर निकलने के रास्ते खोजते हैं।
हां, अस्वीकृति में उठा हाथ में अस्वीकृति के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों का विस्तार से चर्चा की गई है। मानसिक अवसाद, चिंता, और आत्म-संदेह जैसी समस्याओं को सामने लाया गया है और इनसे निपटने के उपाय भी बताए गए हैं, जैसे मानसिक स्थिरता प्राप्त करने के लिए योग और मानसिक स्वच्छता।
Weight | 264 g |
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Dimensions | 21.7 × 13.9 × 1.5 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8128810774 |
Pages | 304 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8128810774 |
मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूँ लेकिन आँखें रहते देश को रोज अंधकार में जाते हुए देखना भी असंभव है। धार्मिक आदमी की उतनी कठोरता और जड़ता में नहीं जुड़ा पाता हूँ। देश रोज-रोज, प्रतिदिन नीचे उतर रहा है। उसकी सारी नैतिकता खो रही है, उसके जीवन में जो भी श्रेष्ठ है, जो भी सुंदर है, जो भी सत्य है, वह सभी कलुषित हुआ जा रहा है। इसके पीछे जानना और समझना जरूरी है कि कौन-सी घटना काम कर रही है। और चूँकि मैंने कहा कि गाँधी के बाद नया युग प्रारंभ होता है, इसलिए गाँधी से ही विचार करना जरूरी है। — ओशो
ISBN10-8128810774
Religions & Philosophy, Books, Diamond Books, Osho
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Language & Literature, Language Teaching Method