Chalo Fir Kabhi Sahi (चलो फिर कभी सही)

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ग़ज़ल की विराट दुनिया से जुड़े लाखों गज़ल-प्रेमियों के लिए यह अत्यन्त सुखद समाचार है कि देश के शीर्षस्थ गीतकार बालस्वरूप राही जी का नया गज़ल-संग्रह प्रकाशित होकर उन तक पहुंच रहा है। राही जी के कितने ही शेर, जैसे-
‘हम पर दुःख का परबत टूटा,
तब हम ने दो-चार कहे,
उस पे भला क्या बीती होगी
जिस ने शेर हज़ार कहे।
कवि-सम्मेलनों तथा मुशायरों में उद्धृत किए जाते हैं। राही जी की गज़लों में आप को सारे रंग देखने को मिल जाते हैं-चाहे वे रिवायती हों, चाहे ताज़ातरीन। उन की ग़ज़लों में आधुनिक रंग बिलकुल नुमायां है जहां गज़ल आम आदमी के दु:ख-दर्द से जुड़ जाती है, उर्दू हिन्दी ग़ज़ल का अन्तर मिट जाता है। ‘चलो फिर कभी सही’ संग्रह में भी विविध रंगों की छटा है। अनेक शेरों में वर्तमान समय की धड़कनें विद्यमान हैं-
दम घुटा जाता बुजुर्गों का कि रिश्ते खो गए,
नौजवां खुश हैं उन्हें बाज़ार अच्छे मिल गए।

 

About the Author

जन्म: 16 मई, 1936
जन्म-स्थान: तिमारपुर, दिल्ली
पिता का नाम: श्री देवीदयाल भटनागर
आजीविकाः दिल्ली विश्वविद्यालय में ट्यूटर, ‘सरिता’ में अंशकालिक कार्य, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में सह-संपादक (1960-1978), “प्रोब इंडिया” (इंग्लिश) के परिकल्पनाकार एवं प्रथम संपादक, भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव (1982-1990), महाप्रबंधक, हिन्दी भवन।
प्रकाशन: मेरा रूप तुम्हारा दर्पण (गीत-संग्रह), जो नितांत मेरी हैं (गीत-संग्रह), राग विराग (हिन्दी का प्रथम ऑपेरा), हमारे लोकप्रिय गीतकार, बालस्वरूप राही (डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित), राही को समझाए कौन (गजल-संग्रह)। बालगीत संग्रह: दादी अम्मा मुझे बताओ, हम जब होंगे बड़े (हिन्दी व अंग्रेज़ी में), बंद कटोरी मीठा जल, हम सब से आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ, सम्पूर्ण बाल कविताएं।
संपादन: भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 8 वार्षिक चयनिकाएँ: भारतीय कविताएँ 1983, 1984, 1985, 1986, भारतीय कहानियाँ 1983, 1984, 1985, 1986
सम्मान तथा पुरस्कार: प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार (समाज कल्याण मंत्रालय), हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान, जै जै वन्ती सम्मान, परम्परा पुरस्कार, हिन्दू कॉलिज द्वारा अति विशिष्ट पूर्व छात्र-सम्मान, साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार।
विशेष: अनेकानेक कवि-गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों आदि में सक्रिय भागीदारी। रेडियो, टी.वी. में अनेक कार्यक्रम। आकाशवाणी से एकल काव्य-पाठ। आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में हिन्दी का प्रतिनिधित्व (2003)। टी.वी. तथा आकाशवाणी के अनेक वृत्तचित्रों, धारावाहिकों की पटकथा, आलेख, गीत-संगीत, नाटक विभाग के अनेक ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों के लिए आलेख तथा गीत। दूरदर्शन द्वारा कवि पर वृत्तचित्र प्रसारण। संसदीय कार्य मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य।.
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ग़ज़ल की विराट दुनिया से जुड़े लाखों गज़ल-प्रेमियों के लिए यह अत्यन्त सुखद समाचार है कि देश के शीर्षस्थ गीतकार बालस्वरूप राही जी का नया गज़ल-संग्रह प्रकाशित होकर उन तक पहुंच रहा है। राही जी के कितने ही शेर, जैसे-
‘हम पर दुःख का परबत टूटा,
तब हम ने दो-चार कहे,
उस पे भला क्या बीती होगी
जिस ने शेर हज़ार कहे।
कवि-सम्मेलनों तथा मुशायरों में उद्धृत किए जाते हैं। राही जी की गज़लों में आप को सारे रंग देखने को मिल जाते हैं-चाहे वे रिवायती हों, चाहे ताज़ातरीन। उन की ग़ज़लों में आधुनिक रंग बिलकुल नुमायां है जहां गज़ल आम आदमी के दु:ख-दर्द से जुड़ जाती है, उर्दू हिन्दी ग़ज़ल का अन्तर मिट जाता है। ‘चलो फिर कभी सही’ संग्रह में भी विविध रंगों की छटा है। अनेक शेरों में वर्तमान समय की धड़कनें विद्यमान हैं-
दम घुटा जाता बुजुर्गों का कि रिश्ते खो गए,
नौजवां खुश हैं उन्हें बाज़ार अच्छे मिल गए।

 

About the Author

जन्म: 16 मई, 1936
जन्म-स्थान: तिमारपुर, दिल्ली
पिता का नाम: श्री देवीदयाल भटनागर
आजीविकाः दिल्ली विश्वविद्यालय में ट्यूटर, ‘सरिता’ में अंशकालिक कार्य, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में सह-संपादक (1960-1978), “प्रोब इंडिया” (इंग्लिश) के परिकल्पनाकार एवं प्रथम संपादक, भारतीय ज्ञानपीठ में सचिव (1982-1990), महाप्रबंधक, हिन्दी भवन।
प्रकाशन: मेरा रूप तुम्हारा दर्पण (गीत-संग्रह), जो नितांत मेरी हैं (गीत-संग्रह), राग विराग (हिन्दी का प्रथम ऑपेरा), हमारे लोकप्रिय गीतकार, बालस्वरूप राही (डॉ. शेरजंग गर्ग द्वारा संपादित), राही को समझाए कौन (गजल-संग्रह)। बालगीत संग्रह: दादी अम्मा मुझे बताओ, हम जब होंगे बड़े (हिन्दी व अंग्रेज़ी में), बंद कटोरी मीठा जल, हम सब से आगे निकलेंगे, गाल बने गुब्बारे, सूरज का रथ, सम्पूर्ण बाल कविताएं।
संपादन: भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 8 वार्षिक चयनिकाएँ: भारतीय कविताएँ 1983, 1984, 1985, 1986, भारतीय कहानियाँ 1983, 1984, 1985, 1986
सम्मान तथा पुरस्कार: प्रकाशवीर शास्त्री पुरस्कार, एन.सी.ई.आर.टी. का राष्ट्रीय पुरस्कार, राष्ट्रीय पुरस्कार (समाज कल्याण मंत्रालय), हिन्दी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान, अक्षरम् सम्मान, उद्भव सम्मान, जै जै वन्ती सम्मान, परम्परा पुरस्कार, हिन्दू कॉलिज द्वारा अति विशिष्ट पूर्व छात्र-सम्मान, साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार।
विशेष: अनेकानेक कवि-गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों आदि में सक्रिय भागीदारी। रेडियो, टी.वी. में अनेक कार्यक्रम। आकाशवाणी से एकल काव्य-पाठ। आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में हिन्दी का प्रतिनिधित्व (2003)। टी.वी. तथा आकाशवाणी के अनेक वृत्तचित्रों, धारावाहिकों की पटकथा, आलेख, गीत-संगीत, नाटक विभाग के अनेक ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों के लिए आलेख तथा गीत। दूरदर्शन द्वारा कवि पर वृत्तचित्र प्रसारण। संसदीय कार्य मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य।.

Additional information

Author

Balswaroop Raahi

ISBN

9789390960521

Pages

32

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/Chalo-Fir-Kabhi-Sahi-/dp/9390960525/ref=sr_1_1?keywords=9789390960521&qid=1646299969&sr=8-1

Flipkart

https://www.flipkart.com/chalo-fir-kabhi-sahi/p/itm192e13ba3aa1b?pid=9789390960521

ISBN 10

9390960525