₹350.00
ग़ज़ल की विराट दुनिया से जुड़े लाखों गज़ल-प्रेमियों के लिए यह अत्यन्त सुखद समाचार है कि देश के शीर्षस्थ गीतकार बालस्वरूप राही जी का नया गज़ल-संग्रह प्रकाशित होकर उन तक पहुंच रहा है। राही जी के कितने ही शेर, जैसे-
‘हम पर दुःख का परबत टूटा,
तब हम ने दो-चार कहे,
उस पे भला क्या बीती होगी
जिस ने शेर हज़ार कहे।
कवि-सम्मेलनों तथा मुशायरों में उद्धृत किए जाते हैं। राही जी की गज़लों में आप को सारे रंग देखने को मिल जाते हैं-चाहे वे रिवायती हों, चाहे ताज़ातरीन। उन की ग़ज़लों में आधुनिक रंग बिलकुल नुमायां है जहां गज़ल आम आदमी के दु:ख-दर्द से जुड़ जाती है, उर्दू हिन्दी ग़ज़ल का अन्तर मिट जाता है। ‘चलो फिर कभी सही’ संग्रह में भी विविध रंगों की छटा है। अनेक शेरों में वर्तमान समय की धड़कनें विद्यमान हैं-
दम घुटा जाता बुजुर्गों का कि रिश्ते खो गए,
नौजवां खुश हैं उन्हें बाज़ार अच्छे मिल गए।
Author | Balswaroop Raahi |
---|---|
ISBN | 9789390960521 |
Pages | 32 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/chalo-fir-kabhi-sahi/p/itm192e13ba3aa1b?pid=9789390960521 |
ISBN 10 | 9390960525 |
ग़ज़ल की विराट दुनिया से जुड़े लाखों गज़ल-प्रेमियों के लिए यह अत्यन्त सुखद समाचार है कि देश के शीर्षस्थ गीतकार बालस्वरूप राही जी का नया गज़ल-संग्रह प्रकाशित होकर उन तक पहुंच रहा है। राही जी के कितने ही शेर, जैसे-
‘हम पर दुःख का परबत टूटा,
तब हम ने दो-चार कहे,
उस पे भला क्या बीती होगी
जिस ने शेर हज़ार कहे।
कवि-सम्मेलनों तथा मुशायरों में उद्धृत किए जाते हैं। राही जी की गज़लों में आप को सारे रंग देखने को मिल जाते हैं-चाहे वे रिवायती हों, चाहे ताज़ातरीन। उन की ग़ज़लों में आधुनिक रंग बिलकुल नुमायां है जहां गज़ल आम आदमी के दु:ख-दर्द से जुड़ जाती है, उर्दू हिन्दी ग़ज़ल का अन्तर मिट जाता है। ‘चलो फिर कभी सही’ संग्रह में भी विविध रंगों की छटा है। अनेक शेरों में वर्तमान समय की धड़कनें विद्यमान हैं-
दम घुटा जाता बुजुर्गों का कि रिश्ते खो गए,
नौजवां खुश हैं उन्हें बाज़ार अच्छे मिल गए।
ISBN10-9390960525
Diamond Books, Books, Business and Management, Economics