Dhananjay – Novel : (धनंजय – उपन्यास)
₹400.00
- About the Book
- Book Details
अरे! ये तो साक्षात महादेव हैं! क्या मैं अभी तक महादेव से युद्ध कर रहा था! सोचकर मेरा रोम-रोम सिहर उठा। उन्हें सामने देखकर मन में भावनाओं का प्रबल ज्वार उठा और एक तरंग नख से शिख तक प्रवाहित हो गई। मैं दौड़कर उनके पास गया और दंडवत मुद्रा में लेट गया।
उन्होंने मुझे कंधे से पकड़कर ऊपर उठाया और बोले, “फाल्गुन! मैं तुम्हारे इस अनुपम पराक्रम, शौर्य और धैर्य से बहुत संतुष्ट हूँ। तुम्हारे समान दूसरा कोई क्षत्रिय नहीं है। तुम्हारा तेज और पराक्रम मेरी प्रशंसा का पात्र है।” उनके शब्द मेरे कानों में शहद की तरह पड़ रहे थे। मेरे मन और प्राण का कोना-कोना सिक्त हो रहा था। इस आनंद का अनुभव मेरे लिए नवीन था। भावनाओं के अतिरेक से मेरे नेत्र बंद हो गए।
उन्होंने आगे कहा, “मेरी ओर देखो भरतश्रेष्ठ! मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम युद्ध में अपने शत्रुओं पर, वे चाहे सम्पूर्ण देवता ही क्यों न हों, विजय पाओगे। मैं तुम्हें अपना पाशुपत अस्त्र दूंगा, जिसकी गति को कोई नहीं रोक सकता। तुम शीघ्र ही मेरे उस अस्त्र को धारण करने में समर्थ हो जाओगे। समस्त त्रिलोक में कोई ऐसा नहीं है, जो उसके द्वारा मारा न जा
मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और उनके चरणों पर मैंने अपना सिर रख दिया। मेरी आँखों से आँसू झरने लगे। मेरे आराध्य मेरे सम्मुख खड़े थे। मुझे आशीर्वाद दे रहे थे।
-इसी पुस्तक से.
About the Author
प्रताप नारायण सिंह, जन्म: 20 जुलाई 1971, उत्तर प्रदेश (भारत)। प्रकाशित कृतियाँ: “सीताः एक नारी” (खंडकाव्य), “बस इतना ही करना” (काव्य-संग्रह), “राम रचि राखा” (कहानी-संग्रह)। पुरस्कार: “सीता: एक नारी” के लिये हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा “जयशंकर प्रसाद पुरस्कार”।
Additional information
Author | Pratap Narayan Singh |
---|---|
ISBN | 9789390504190 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Toons |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/dhananjay/p/itm7a0573b4c55b7?pid=9789390504190 |
ISBN 10 | 9390504198 |
अरे! ये तो साक्षात महादेव हैं! क्या मैं अभी तक महादेव से युद्ध कर रहा था! सोचकर मेरा रोम-रोम सिहर उठा। उन्हें सामने देखकर मन में भावनाओं का प्रबल ज्वार उठा और एक तरंग नख से शिख तक प्रवाहित हो गई। मैं दौड़कर उनके पास गया और दंडवत मुद्रा में लेट गया।
उन्होंने मुझे कंधे से पकड़कर ऊपर उठाया और बोले, “फाल्गुन! मैं तुम्हारे इस अनुपम पराक्रम, शौर्य और धैर्य से बहुत संतुष्ट हूँ। तुम्हारे समान दूसरा कोई क्षत्रिय नहीं है। तुम्हारा तेज और पराक्रम मेरी प्रशंसा का पात्र है।” उनके शब्द मेरे कानों में शहद की तरह पड़ रहे थे। मेरे मन और प्राण का कोना-कोना सिक्त हो रहा था। इस आनंद का अनुभव मेरे लिए नवीन था। भावनाओं के अतिरेक से मेरे नेत्र बंद हो गए।
उन्होंने आगे कहा, “मेरी ओर देखो भरतश्रेष्ठ! मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम युद्ध में अपने शत्रुओं पर, वे चाहे सम्पूर्ण देवता ही क्यों न हों, विजय पाओगे। मैं तुम्हें अपना पाशुपत अस्त्र दूंगा, जिसकी गति को कोई नहीं रोक सकता। तुम शीघ्र ही मेरे उस अस्त्र को धारण करने में समर्थ हो जाओगे। समस्त त्रिलोक में कोई ऐसा नहीं है, जो उसके द्वारा मारा न जा
मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और उनके चरणों पर मैंने अपना सिर रख दिया। मेरी आँखों से आँसू झरने लगे। मेरे आराध्य मेरे सम्मुख खड़े थे। मुझे आशीर्वाद दे रहे थे।
-इसी पुस्तक से.
About the Author
प्रताप नारायण सिंह, जन्म: 20 जुलाई 1971, उत्तर प्रदेश (भारत)। प्रकाशित कृतियाँ: “सीताः एक नारी” (खंडकाव्य), “बस इतना ही करना” (काव्य-संग्रह), “राम रचि राखा” (कहानी-संग्रह)। पुरस्कार: “सीता: एक नारी” के लिये हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा “जयशंकर प्रसाद पुरस्कार”।
ISBN10-9390504198