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जन्म, कानपुर शहर (उत्तर प्रदेश)। पढ़ाई स्नातक, फिर बी-एड। संयोगवश देश के कई शहरों में रहना हुआ और बहुत सारे लोगों से मिलना भी। हर इन्सान अपने स्वभाव और खूबियों के अनुसार मेरे दिल और दिमाग पर अपनी छाप छोड़ता गया, परिणामस्वरूप स्मृतियों के टोकरे से अनेक कथाएं निकल-निकल कर मेरी लेखनी को एक पहचान दे रही हैं। बस इतना ही परिचय है मेरा। एक सत्यकथा दो परिवारों की। मध्य भारत के जंगली इलाके में रहने वाला पहला परिवार, जिसके सदस्यों के लिए भूख सहने की कला में पारंगत होना ही, जीवन की परम उपलब्धि थी और दूसरा परिवार राजधानी के पास के एक शहर में रहने वाला अरबपति परिवार-जिनके पालतू कुत्तों के भी ‘डाईटीशियन’ लगे हुए थे। नियति का खेल हुआ और दोनों परिवार आमने-सामने आ गए। फिर क्या हुआ? ये जानने के लिए पढ़ना होगा – ‘एक बुढ़िया और दो परिवार’।
Author | Kumkum Singh |
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ISBN | 9789389807615 |
Pages | 24 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9389807611 |
जन्म, कानपुर शहर (उत्तर प्रदेश)। पढ़ाई स्नातक, फिर बी-एड। संयोगवश देश के कई शहरों में रहना हुआ और बहुत सारे लोगों से मिलना भी। हर इन्सान अपने स्वभाव और खूबियों के अनुसार मेरे दिल और दिमाग पर अपनी छाप छोड़ता गया, परिणामस्वरूप स्मृतियों के टोकरे से अनेक कथाएं निकल-निकल कर मेरी लेखनी को एक पहचान दे रही हैं। बस इतना ही परिचय है मेरा। एक सत्यकथा दो परिवारों की। मध्य भारत के जंगली इलाके में रहने वाला पहला परिवार, जिसके सदस्यों के लिए भूख सहने की कला में पारंगत होना ही, जीवन की परम उपलब्धि थी और दूसरा परिवार राजधानी के पास के एक शहर में रहने वाला अरबपति परिवार-जिनके पालतू कुत्तों के भी ‘डाईटीशियन’ लगे हुए थे। नियति का खेल हुआ और दोनों परिवार आमने-सामने आ गए। फिर क्या हुआ? ये जानने के लिए पढ़ना होगा – ‘एक बुढ़िया और दो परिवार’।