Fifty-Fifty (Vyang-Kavitayein) : फिफ्टी-फिफ्टी (व्यंग-कविताएं)
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- Description
- Information
हास्य विद्रूपताओंसे और व्यंग्य विसंगतियों से जन्मता है। मेरी दृष्टि में अच्छा और सार्थक व्यंग्य वही होता है जो किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि नकारात्मक प्रवृत्ति पर किया गया हो। अच्छा व्यंग्य विसंगतियों, विकृतियों और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर प्रहार करते हुए उनके समाधान भी सझाता है। कवि श्री मंजीत सिंह के व्यंग्य संग्रह ‘ फिफ्टी फिफ्टी ‘ को पढ़ते हुए इस सत्य की पूरी ताकीद होती है कि पसु्तक के व्यंग्य अपनी पूरी शक्ति के साथ विसंगतियों पर प्रहार करते हुए सच की स्थापना करते हैं।
एक सार्थक व्यंग्य रचना किसी व्यक्ति या व्यवस्था का उपहास नहीं करती बल्कि समाज सुधारक की भूमिका भी निभाती है। व्यंग्य की भाषा पाठक के मन में चभन तो पैदा करती ही है, नकारात्मकता के विरुद्ध वितृष्णा भी उत्पन्न करने के साथ आनंद की भी अनुभूति कराती है।
श्री मंजीत सिंह हास्य व्यंग्य के शानदार धारदार कवि हैं। उनके पास देश विदेश के अनभुवों का अकूत खज़ाना है। धारदार भाषा का अप्रतिम भंडार है। हास्य बोध होने के कारण उनकी व्यंग्य रचनाओंमें हास्य के सहज पुट उसी तरह से मिल जाते हैं जैसे कड़वी औषधियां मीठी चाशनी के लेप के साथ लोगों को खिलाई जाती हैं। ‘इक लैला के पांच हैं मजनू’, ‘लोहे का पुल’, ‘सरकारी ट्यूबलाइट’, ‘और चिपको टीवी से’, ‘कम उम्र के नसु्खे’, ‘वोटर की जेब’, ‘कुंभकरण और नेता’, ‘लेडीज सीट’, शीर्षक रचनाएं ऐसी सहज अनुभूतियों को सहेजने में पूरी तरह से समर्थ हैं।
Additional information
Author | Manjeet Sardar Singh |
---|---|
ISBN | 9789354869778 |
Pages | 96 |
Format | Paper Back |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/fifty-fifty-hasya-vyang/p/itmbad6af61b9a7c?pid=9789354869778 |
ISBN 10 | 9354869777 |
हास्य विद्रूपताओंसे और व्यंग्य विसंगतियों से जन्मता है। मेरी दृष्टि में अच्छा और सार्थक व्यंग्य वही होता है जो किसी व्यक्ति पर नहीं बल्कि नकारात्मक प्रवृत्ति पर किया गया हो। अच्छा व्यंग्य विसंगतियों, विकृतियों और नकारात्मक प्रवृत्तियों पर प्रहार करते हुए उनके समाधान भी सझाता है। कवि श्री मंजीत सिंह के व्यंग्य संग्रह ‘ फिफ्टी फिफ्टी ‘ को पढ़ते हुए इस सत्य की पूरी ताकीद होती है कि पसु्तक के व्यंग्य अपनी पूरी शक्ति के साथ विसंगतियों पर प्रहार करते हुए सच की स्थापना करते हैं।
एक सार्थक व्यंग्य रचना किसी व्यक्ति या व्यवस्था का उपहास नहीं करती बल्कि समाज सुधारक की भूमिका भी निभाती है। व्यंग्य की भाषा पाठक के मन में चभन तो पैदा करती ही है, नकारात्मकता के विरुद्ध वितृष्णा भी उत्पन्न करने के साथ आनंद की भी अनुभूति कराती है।
श्री मंजीत सिंह हास्य व्यंग्य के शानदार धारदार कवि हैं। उनके पास देश विदेश के अनभुवों का अकूत खज़ाना है। धारदार भाषा का अप्रतिम भंडार है। हास्य बोध होने के कारण उनकी व्यंग्य रचनाओंमें हास्य के सहज पुट उसी तरह से मिल जाते हैं जैसे कड़वी औषधियां मीठी चाशनी के लेप के साथ लोगों को खिलाई जाती हैं। ‘इक लैला के पांच हैं मजनू’, ‘लोहे का पुल’, ‘सरकारी ट्यूबलाइट’, ‘और चिपको टीवी से’, ‘कम उम्र के नसु्खे’, ‘वोटर की जेब’, ‘कुंभकरण और नेता’, ‘लेडीज सीट’, शीर्षक रचनाएं ऐसी सहज अनुभूतियों को सहेजने में पूरी तरह से समर्थ हैं।
ISBN10-9354869777
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