Hari Anant – Hari Katha Ananta – Part – 3 (‘हरि अनन्त- हरि कथा अनन्ता’ – भाग – 3)

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उपनिषदों में वर्णित “द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया” जैसी बात है यह। शायद यह उससे भी थोड़ा अलग है क्योंकि तब मैं किसी रस में होता हूँ तो वहाँ कोई हिस्सा मेरा अलग बैठा साक्षी वाक्षी नहीं रहता बल्कि मैं पूरा का पूरा उस रस से युक्त हो जाता हूँ। जीवन को उसमें डूब कर जीता हूँ – हर क्षण को, हर रस को। यही मेरा वर्तमान है। इसमें बुद्ध की उपेक्षा, महावीर की वीतरागता, कृष्ण की मधुरता और जीसस क्राइस्ट का कष्ट सहन समान रूप से मौजूद होते हैं। साथ ही होता है अभिनव गुप्त की ईश्वर प्रत्यभिज्ञा और सुकरात का रहस्य बोध।
संक्षेप में यही मेरी जीवन चर्चा है- मेरा भागवत पथ जिसने बुद्ध से शुरू होकर वासुदेव तक मुझे पहुँचा दिया। मैं वासुदेव को जी रहा हूँ। यह सब मैं कोई आत्मप्रशंसा में नहीं कह रहा हूँ। इन बातों को कहने के पीछे एक ही प्रयास है मेरी कि शायद तुम्हें भी अपने मार्ग को ढूँढ़ने में कुछ मदद मिल सके।
-स्वामी चैतन्य वीतराग

 

About the Author

स्वामी जी:- मैं यह जान गया हूँ कि एक रहस्यपूर्ण सत्ता अस्तिवान है- शायद वही अस्तित्व है। वह सत्ता चैतन्य है- परम संवेदनशील है। वह सत्ता परम स्वतंत्र है और वह शक्ति संपन्न है। यह मैं सद्गुरू कृपा से कुछेक रहस्यपूर्ण अनुभवों से जान पाया। उस सत्ता का कोई आदि-अंत नहीं, कोई ओर-छोर नहीं। उसे मैंने सर्वज्ञ, शक्तिमान और सर्वव्यापक जाना है।

Additional information

Author

Swami Chaitanya Vitraag

ISBN

9789354869457

Pages

80

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

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https://www.amazon.in/dp/9354869459

Flipkart

https://www.flipkart.com/hari-anant-katha-ananta-part-3/p/itm438181b024c3a?pid=9789354869457

ISBN 10

9354869459

उपनिषदों में वर्णित “द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया” जैसी बात है यह। शायद यह उससे भी थोड़ा अलग है क्योंकि तब मैं किसी रस में होता हूँ तो वहाँ कोई हिस्सा मेरा अलग बैठा साक्षी वाक्षी नहीं रहता बल्कि मैं पूरा का पूरा उस रस से युक्त हो जाता हूँ। जीवन को उसमें डूब कर जीता हूँ – हर क्षण को, हर रस को। यही मेरा वर्तमान है। इसमें बुद्ध की उपेक्षा, महावीर की वीतरागता, कृष्ण की मधुरता और जीसस क्राइस्ट का कष्ट सहन समान रूप से मौजूद होते हैं। साथ ही होता है अभिनव गुप्त की ईश्वर प्रत्यभिज्ञा और सुकरात का रहस्य बोध।
संक्षेप में यही मेरी जीवन चर्चा है- मेरा भागवत पथ जिसने बुद्ध से शुरू होकर वासुदेव तक मुझे पहुँचा दिया। मैं वासुदेव को जी रहा हूँ। यह सब मैं कोई आत्मप्रशंसा में नहीं कह रहा हूँ। इन बातों को कहने के पीछे एक ही प्रयास है मेरी कि शायद तुम्हें भी अपने मार्ग को ढूँढ़ने में कुछ मदद मिल सके।
-स्वामी चैतन्य वीतराग

 

About the Author

स्वामी जी:- मैं यह जान गया हूँ कि एक रहस्यपूर्ण सत्ता अस्तिवान है- शायद वही अस्तित्व है। वह सत्ता चैतन्य है- परम संवेदनशील है। वह सत्ता परम स्वतंत्र है और वह शक्ति संपन्न है। यह मैं सद्गुरू कृपा से कुछेक रहस्यपूर्ण अनुभवों से जान पाया। उस सत्ता का कोई आदि-अंत नहीं, कोई ओर-छोर नहीं। उसे मैंने सर्वज्ञ, शक्तिमान और सर्वव्यापक जाना है।

ISBN10-9354869459