जब रहा न कोई चारा रे,
अंगूरी बनी अंगारा रे।
अंगारा रे अंगारा रे।
सपनों को कुचलने आए, हाए रब्बा कौन बचाए?
अपनों ने मिलकर मारा रे।
अंगूरी बनी अंगारा रे।
पर ही मजबूत इरादा, हट जाती हैं सब बाधा।
बस हिम्मत एक सहारा रे।
अंगूरी बनी अंगारा रे।
Jab Raha Na Koi Chara (जब रहा न कोई चारा)
₹150.00
जब रहा न कोई चारा रे,
अंगूरी बनी अंगारा रे।
अंगारा रे अंगारा रे।
सपनों को कुचलने आए, हाए रब्बा कौन बचाए?
अपनों ने मिलकर मारा रे।
अंगूरी बनी अंगारा रे।
पर ही मजबूत इरादा, हट जाती हैं सब बाधा।
बस हिम्मत एक सहारा रे।
अंगूरी बनी अंगारा रे।
ISBN10-8171829600
Additional information
Author | Ashok Chakradhar |
---|---|
ISBN | 8171829600 |
Pages | 160 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 8171829600 |
SKU
9788171829606
Categories Humorous Poetry, Humour