ओशो के बारे में रोचक तथ्य
ओशो एक उच्च कोटि के व्यक्ति थे। उनका बोलने पर इतना आत्मविश्वास था की एक बार जो बोल दिया सो बोला दिया वही आखिरी होगा।
ओशो ने लगभग-लगभग हर एक विषय पर बात/प्रवचन दिए हैं। यदि साहित्यिक लेखिकी को छोड़ दें तो भारत में सबसे ज्यादा किताबें ओशो की बिकती हैं। ओशो सेक्सुअलिटी पर खुले रूप से बातें किया करते थे और वो सेक्स को लेकर बड़े स्वतंत्र होकर बातें किया करते थे ।
ओशो एक बहुत ही गजब के तर्क शास्त्री थे। वह किसी भी बात को सही और गलत साबित करने के पूरी क्षमता रखते थे।
ओशो बचपन से ही लक्सरी लाइफ जीने के आदि रहे थे।
ओशो को अमीरों का गुरु कहा जाता है और खुद भी उन्होंने अपने इंटरव्यूज मे बार-बार जिक्र किया है की वो अमीरों के गुरु हैं। आपको पता है ओशो के पास 90 रॉयल्स रोल्स कारें थीं।
ओशो की म्रत्यु आज भी रहस्य है। कहा तो ये भी जाता है की उन्हीं के करीबी शिष्यों ने उनकी हत्या को अंजाम दिया था।
इसके सबूत भी मिलते हैं क्योंकि उनकी हत्या शिष्यों के बीच हुई और उन्होंने कहा कि गुरु जी ने देह त्याग दी।
जीवन की कला से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता, हमारी पात्रता, हमारी ग्राहकता, हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है, जीवन में जो सत्य है, जीवन में जो शिव है, वह सब-वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें, लेकिन हम जीवन के साथ जो व्यवहार करते हैं, उससे हमारे हृदय का दर्पण न तो निखरता, न निर्मल होता, न साफ होता; और गंदा होता, और धूल से भर जाता है। उसमें प्रतिबिंब पड़ने और भी कठिन हो जाते हैं। जिस भांति जीवन को हम बनाए हैं-सारी शिक्षा, सारी संस्कृति, सारा समाज मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक दिशा में नहीं ले जाता है। बचपन से ही गलत दिशा शुरू हो जाती है और वह गलत दिशा जीवन भर, जीवन से ही परिचित होने में बाधा डालती रहती है। पहली बात, जीवन को अनुभव करने के लिए एक प्रामाणिक चित्त, एक शुद्ध दिमाग चाहिए। हमारा सारा चित्त औपचारिक है, फार्मल है, प्रामाणिक नहीं है।
पुस्तक के बारे में
“जीवन की कला से मेरा यही प्रयोजन है कि हमारी संवेदनशीलता, हमारी पात्रता, हमारी ग्राहकता, हमारी रिसेप्टिविटी इतनी विकसित हो कि जीवन में जो सुंदर है, जीवन में जो सत्य है, जीवन में जो शिव है, वह सब – वह सब हमारे हृदय तक पहुंच सके। उस सबको हम अनुभव कर सकें, लेकिन हम जीवन के साथ जो व्यवहार करते हैं, उससे हमारे हृदय का दर्पण न तो निखरता, न निर्मल होता, न साफ होता; और गंदा होता, और धूल से भर जाता है । उसमें प्रतिबिंब पड़ने और भी कठिन हो जाते हैं। जिस भांति जीवन को हम बनाए हैं- सारी शिक्षा, सारी संस्कृति, सारा समाज मनुष्य के व्यक्तित्व को ठीक दिशा में नहीं ले जाता है। बचपन से ही गलत दिशा शुरू हो जाती है और वह गलत दिशा जीवन भर, जीवन से ही परिचित होने में बाधा डालती रहती है। पहली बात, जीवन को अनुभव करने के लिए एक प्रामाणिक चित्त, एक शुद्ध दिमाग चाहिए। हमारा सारा चित्त औपचारिक है, फार्मल है, प्रामाणिक नहीं है। न तो प्रामाणिक रूप से कभी प्रेम, न कभी क्रोध, न प्रामाणिक रूप से कभी हमने घृणा की है, न प्रामाणिक रूप से हमने कभी क्षमा की है।
हमारे सारे चित्त के आवर्तन, हमारे सारे चित्त के रूप औपचारिक हैं, झूठे हैं, मिथ्या हैं। अब मिथ्या चित्त को लेकर जीवन के सत्य को कोई कैसे जान सकता है? सत्य चित्त को लेकर ही जीवन के सत्य से संबंधित हुआ जा सकता है। हमारा पूरा दिमाग, हमारा पूरा चित्त, हमारा पूरा मन मिथ्या और औपचारिक है। इसे समझ लेना उपयोगी है।
सुबह ही आप अपने घर के बाहर आ गए हैं और कोई राह पर दिखाई पड़ गया है और आप नमस्कार कर चके हैं। और आप कहते हैं कि उससे मिलके बड़ी खुशी हुई, आपके दर्शन हो गए लेकिन मन में आप सोचते हैं कि इस दुष्ट का सुबह ही सुबह चेहरा कहां से दिखाई पड़ गया । यह अशुद्ध दिमाग है, यह गैर- प्रामाणिक मन की शुरुआत हुई। चौबीस घंटे हम ऐसे दोहरे ढंग से जीते हैं, तो जीवन से कैसे संबंध होगा? बंधन पैदा होता है दोहरेपन से । जीवन में कोई बंधन नहीं है।”
लेखक के बारे में
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है। हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
जीवन जीने की कला से आप क्या समझते हैं?
जीवन जीने की कला का मतलब है जीवन को सही तरीके से, संतुलित और खुशहाल ढंग से जीना। इसका संबंध जीवन की चुनौतियों को समझदारी, धैर्य और आत्मज्ञान के साथ स्वीकार करने से है। यह कला हमें सिखाती है कि कैसे हम अपनी भावनाओं, विचारों और क्रियाओं को इस तरह से प्रबंधित करें कि हम न केवल अपने जीवन में संतुष्टि पाएं बल्कि दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक योगदान दे सकें।
जीवन जीने की कला कैसे सीखें?
जीवन जीने की कला सीखने के लिए सबसे पहले आत्म-निरीक्षण और स्वयं को समझना आवश्यक है। धैर्य, सहनशीलता और सकारात्मक सोच के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए योग और ध्यान को अपनाएं। दूसरों की मदद करना और वर्तमान में जीना जीवन को सार्थक बनाता है। “जीवन जीने की कला” किताब में इन पहलुओं पर गहराई से चर्चा की गई है, जो जीवन को बेहतर तरीके से जीने में मार्गदर्शन करती है।
जीवन जीने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
जीवन जीने का मुख्य उद्देश्य आत्मिक शांति और संतुष्टि प्राप्त करना है। यह उद्देश्य अपने और दूसरों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने, प्रेम, करुणा और सेवा के साथ जीने में निहित होता है। जीवन की चुनौतियों को समझदारी से स्वीकार कर, खुद को बेहतर बनाते हुए समाज और मानवता के लिए कुछ सार्थक करना ही जीवन का असली उद्देश्य है।
‘जीवन जीने की कला‘ पुस्तक में कौन-कौन से जीवन के मुख्य पहलू बताए गए हैं?
इस पुस्तक में मानसिक शांति, आत्म-साक्षात्कार, सकारात्मक सोच, और जीवन को आनंदमय तरीके से जीने के उपायों पर जोर दिया गया है।
क्या ‘जीवन जीने की कला‘ एक आत्म-सहायता पुस्तक है?
हां, ‘जीवन जीने की कला’ एक आत्म-सहायता पुस्तक है जो व्यक्तिगत विकास, आत्म-साक्षात्कार और जीवन में खुशहाल रहने के तरीकों पर प्रकाश डालती है।
जीवन जीने की कला‘ किताब किसके लिए उपयुक्त है?
यह किताब उन सभी के लिए उपयुक्त है जो अपने जीवन को बेहतर बनाने और जीने की कला सीखने की इच्छा रखते हैं। जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने के इच्छुक पाठकों के लिए यह पुस्तक अत्यंत लाभकारी है।