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कब तक पुकारूँ रांगेय राघव द्वारा लिखा गया एक अद्भुत उपन्यास है। जिसमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़ा ‘बैर’ एक ग्रामीण क्षेत्र की कहानी कहता है। वहाँ नटों की भी बस्ती है। तत्कालीन जरायम पेशा करनटों की संस्कृति पर आधारित एक सफल आंचलिक उपन्यास है। सुखराम करनट अवैध सम्बन्ध से उत्पन नायक है। नट खेल तमाशे दिखाते हैं और नटनियाँ तमाशों के साथ-साथ दर्शकों को यौन संतुष्टि देकर आजीविका में इजाफा करती हैं। करनटों की युवा लड़कियां प्रायः ठाकरों के पास जाया करती थीं। नैतिकता क्या है, इसका ज्ञान उन्हें नहीं था। थोड़े से पैसों की खातिर वे कहीं भी चलने को तैयार हो जाती थीं।
रांगेय राघव (17 जनवरी, 1923 – 12 सितंबर, 1962) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए। आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी।
यह पुस्तक एक भावनात्मक और गहन साहित्यिक रचना है, जो मानव जीवन, प्रेम, संघर्ष, और आत्मनिरीक्षण के पहलुओं को उजागर करती है।
इस पुस्तक के लेखक लेखक का नाम हैं, जो अपनी गहरी सोच और संवेदनशील लेखन शैली के लिए जाने जाते हैं।
नहीं, कब तक पुकारूँ हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो गहरी और अर्थपूर्ण साहित्यिक रचनाओं में रुचि रखते हैं।
यह पुस्तक [उपन्यास/कविता संग्रह/नाटक/लेखों का संकलन] है। (यह जानकारी पुस्तक की शैली के अनुसार भरी जा सकती है।)
हां, लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और जीवन के दृष्टिकोण को इस पुस्तक में शामिल किया है, जिससे यह और भी प्रासंगिक और प्रभावी बनती है।
Weight | 550 g |
---|---|
Dimensions | 21.6 × 14 × 2.57 cm |
Author | Rangeya Raghav |
ISBN | 9789355990648 |
Pages | 48 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/kab-tak-pukaroon/p/itm0b69e212795ae?pid=9789355990648 |
ISBN 10 | 9355990642 |
कब तक पुकारूँ रांगेय राघव द्वारा लिखा गया एक अद्भुत उपन्यास है। जिसमें राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुड़ा ‘बैर’ एक ग्रामीण क्षेत्र की कहानी कहता है। वहाँ नटों की भी बस्ती है। तत्कालीन जरायम पेशा करनटों की संस्कृति पर आधारित एक सफल आंचलिक उपन्यास है। सुखराम करनट अवैध सम्बन्ध से उत्पन नायक है। नट खेल तमाशे दिखाते हैं और नटनियाँ तमाशों के साथ-साथ दर्शकों को यौन संतुष्टि देकर आजीविका में इजाफा करती हैं। करनटों की युवा लड़कियां प्रायः ठाकरों के पास जाया करती थीं। नैतिकता क्या है, इसका ज्ञान उन्हें नहीं था। थोड़े से पैसों की खातिर वे कहीं भी चलने को तैयार हो जाती थीं।
रांगेय राघव (17 जनवरी, 1923 – 12 सितंबर, 1962) हिंदी के उन विशिष्ट और बहुमुखी प्रतिभा वाले रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र लेकर इस संसार में आए, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही एक साथ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, साथ ही अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए। आगरा में जन्मे रांगेय राघव ने हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी।
ISBN10-9355990642
Indian Philosophy, Books, Diamond Books
Business and Management, Religions & Philosophy
Diamond Books, Books, Business and Management, Economics
Self Help, Books, Diamond Books