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Kaun Hai Guru

150.00

“आज आदमी की अपनी नासमझी के कारण न केवल भगवान शब्द झूठा होता जा रहा है बल्कि गुरु शब्द भी एक ढोंग का नाम बनकर रह गया है। सच तो यह है कि भगवान और गुरु की पहचान, परिभाषा तथा अंतर व महत्व जिस ढंग से समझा व जाना जा सकता है वह माध्यम ही कमजोर हो गया है, यानी भक्त और शिष्य का। क्योंकि भगवान को पहचानने के लिए सच्चा भक्त चाहिए और गुरु को पहचानने के लिए सच्चा शिष्य। न तो हम सच्चे भक्त बने हैं न ही असली शिष्य। हम सरलता से दोनों पर उंगली तो उठा देते हैं पर क्या कभी हम यह सोचते हैं कि क्या हम सच्चे भक्त या असली शिष्य हैं?
भगवान का अनुभव या उसकी पहचान गुरु द्वारा ही संभव है। गुरु के द्वारा ही परमात्मा का पता चलता है व उसकी झलक मिलती है। यही कारण है कि मैंने इस पुस्तक को ‘कौन है गुरु? नाम दिया है। गुरु को परिभाषित करती इस पुस्तक में मात्र गुरु-शिष्य की भूरी-भूरी बातें ही नहीं बल्कि कड़वी सच्चाइयां भी हैं जो तथाकथित साधु-संतों एवं गुरु-बाबाओं का कोरा चिट्ठा भी खोलती हैं।”

Additional information

Author

Shashikant Sadaiv

ISBN

9789350836002

Pages

128

Format

Paper Back

Language

Hindi

Publisher

Junior Diamond

ISBN 10

9350836009

“आज आदमी की अपनी नासमझी के कारण न केवल भगवान शब्द झूठा होता जा रहा है बल्कि गुरु शब्द भी एक ढोंग का नाम बनकर रह गया है। सच तो यह है कि भगवान और गुरु की पहचान, परिभाषा तथा अंतर व महत्व जिस ढंग से समझा व जाना जा सकता है वह माध्यम ही कमजोर हो गया है, यानी भक्त और शिष्य का। क्योंकि भगवान को पहचानने के लिए सच्चा भक्त चाहिए और गुरु को पहचानने के लिए सच्चा शिष्य। न तो हम सच्चे भक्त बने हैं न ही असली शिष्य। हम सरलता से दोनों पर उंगली तो उठा देते हैं पर क्या कभी हम यह सोचते हैं कि क्या हम सच्चे भक्त या असली शिष्य हैं?
भगवान का अनुभव या उसकी पहचान गुरु द्वारा ही संभव है। गुरु के द्वारा ही परमात्मा का पता चलता है व उसकी झलक मिलती है। यही कारण है कि मैंने इस पुस्तक को ‘कौन है गुरु? नाम दिया है। गुरु को परिभाषित करती इस पुस्तक में मात्र गुरु-शिष्य की भूरी-भूरी बातें ही नहीं बल्कि कड़वी सच्चाइयां भी हैं जो तथाकथित साधु-संतों एवं गुरु-बाबाओं का कोरा चिट्ठा भी खोलती हैं।”

ISBN10-9350836009

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