क्या मनुष्य एक यंत्र है?’ इसमें ओशो कहते हैं-
‘मैं मनुष्य को लड़ता में डूबा हुआ देखता हूं। उसका जीवन बिलकुल यांत्रिक बन गया है। हम जो भी कर रहे हैं, वह कर नहीं रहे हैं, हमसे हो रहा है। हमारे कर्म सचेतन और सजग नहीं हैं। वे कर्म न होकर केवल प्रतिक्रियाएं हैं। यह मंजिल जीवन मृत्यु-तुल्य है। जड़ता और यांत्रिकता से ऊपर उठने से ही वास्तविक जीवन प्रारंभ होता है।’
उस समय ओशों के इन शब्दों को पढ़ते ही लेखक के जीवन में एक झंझावत की शुरुआत हुई थी। यह सबसे पहला क्रांति-सूत्र था, जो ओशो तक पहुंचने के लिए एक महासूत्र बन गया था। अगर आपने अभी तक ओशों की और कोई पुस्तक नहीं पढ़ी है और यह पहली पुस्तक आपके हाथ लगी है, तो अपनी अनुभूति के आधार पर सावधान रहे क्योंकि यह आपके जीवन में महाक्रांति की एक चिनगारी सिद्ध होगी।
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ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है। हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।