Mikhla Ek Rahasyamayi Gatha PB Hindi

175.00

इसकी शुरूआत होती है 423 मि0पु0 से।

इस दुनिया में इंसानों के बीच युद्ध हमेशा से धन-दौलत, सत्ता और स्त्री के लिए होते आये हैं मगर इस कहानी में युद्ध की वजह है मिख्ला वृक्ष।

मिख्ला अपनी तरह का दुनिया में एकमात्र वृक्ष है जो मिख्ला पुरवा साम्राज्य में है। यह वृक्ष हजारों वृक्षों, लताओं और झाड़ियों की खूबियाँ अपने अंदर समेटे है। मिख्ला पुरवा के वासी इसे अपना ईश्वर मानते हैं।

कहने को मिख्ला पुरवा में राजतंत्र है मगर फिर भी यहाँ जाति-धर्म सम्बन्धी भेदभाव बिल्कुल भी नहीं हैं। इस पुरवा के वासी सिर्फ इंसानी धर्म स्वीकारते हैं।

एक तरफ मिख्ला पुरवा है जिसके वासियों को प्रकृति से अति मोह है। वे प्रकृति को जरा भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते इसलिए उन्होंने स्वयं को और अपनी जरूरतों को प्रकृति के अनुकूल ढाल रखा है। उनके घर-महल आदि वृक्षों पर बने हैं। यहाँ तक की उनके परिवहन के मार्ग भी वृक्षों पर बने हैं।

वहीं दूसरी तरफ है साहोपुरम जो कि लुटेरों का एक नगर है। लुटेरे हर कीमत पर मिख्ला को लूटना चाहते हैं। इसी के चलते वे मिख्ला पुरवा पर आक्रमण करते हैं।

आखिर लुटेरे मिख्ला को क्यों लूटना चाहते हैं ?

क्या वे उसे लूटकर साहोपुरम ले जा पायेंगे ?

या उन्हें हर बार की तरह मुंह की खानी पडे़गी ?

इन सवालों के जवाब आपको इस पुस्तक को पढ़ने पर मिल जायेंगे।

Additional information

Author

Roin Raga And Rijhjham Raga

ISBN

9789352963508

Pages

536

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Junior Diamond

ISBN 10

9352963504

इसकी शुरूआत होती है 423 मि0पु0 से।

इस दुनिया में इंसानों के बीच युद्ध हमेशा से धन-दौलत, सत्ता और स्त्री के लिए होते आये हैं मगर इस कहानी में युद्ध की वजह है मिख्ला वृक्ष।

मिख्ला अपनी तरह का दुनिया में एकमात्र वृक्ष है जो मिख्ला पुरवा साम्राज्य में है। यह वृक्ष हजारों वृक्षों, लताओं और झाड़ियों की खूबियाँ अपने अंदर समेटे है। मिख्ला पुरवा के वासी इसे अपना ईश्वर मानते हैं।

कहने को मिख्ला पुरवा में राजतंत्र है मगर फिर भी यहाँ जाति-धर्म सम्बन्धी भेदभाव बिल्कुल भी नहीं हैं। इस पुरवा के वासी सिर्फ इंसानी धर्म स्वीकारते हैं।

एक तरफ मिख्ला पुरवा है जिसके वासियों को प्रकृति से अति मोह है। वे प्रकृति को जरा भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते इसलिए उन्होंने स्वयं को और अपनी जरूरतों को प्रकृति के अनुकूल ढाल रखा है। उनके घर-महल आदि वृक्षों पर बने हैं। यहाँ तक की उनके परिवहन के मार्ग भी वृक्षों पर बने हैं।

वहीं दूसरी तरफ है साहोपुरम जो कि लुटेरों का एक नगर है। लुटेरे हर कीमत पर मिख्ला को लूटना चाहते हैं। इसी के चलते वे मिख्ला पुरवा पर आक्रमण करते हैं।

आखिर लुटेरे मिख्ला को क्यों लूटना चाहते हैं ?

क्या वे उसे लूटकर साहोपुरम ले जा पायेंगे ?

या उन्हें हर बार की तरह मुंह की खानी पडे़गी ?

इन सवालों के जवाब आपको इस पुस्तक को पढ़ने पर मिल जायेंगे।

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