Patnjali Yog Sutra Vol. 5 by OSho-(पतंजलि योग-सूत्र भाग 5)
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पतंजलि योग-सूत्र भाग 5 ओशो की व्याख्या की अंतिम कड़ी है, जिसमें पतंजलि के योग सूत्रों के उच्चतम और अंतिम सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। ओशो योग की गहरी अवस्थाओं, जैसे समाधि और मोक्ष को सरल भाषा में समझाते हैं। यह पुस्तक उन साधकों के लिए अत्यधिक उपयोगी है जो आत्मिक विकास और मोक्ष की गहराई को समझना चाहते हैं।
u003cstrongu003eपतंजलि योग-सूत्र भाग 5 क्या है?u003c/strongu003e
u003cemu003eपतंजलि योग-सूत्र भाग 5u003c/emu003e ओशो की व्याख्या का अंतिम खंड है, जिसमें पतंजलि के योग सूत्रों के उच्चतम सिद्धांतों को विस्तार से समझाया गया है। यह पुस्तक समाधि और मोक्ष जैसी गहन अवस्थाओं पर केंद्रित है।
u003cstrongu003eओशो पतंजलि योग-सूत्र भाग 5 में मोक्ष को कैसे परिभाषित करते हैं?u003c/strongu003e
ओशो मोक्ष को आत्मा की पूर्ण मुक्ति और जागृति की अवस्था बताते हैं। यह अवस्था योग का सर्वोच्च लक्ष्य है, जहां साधक संसार के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
u003cstrongu003eओशो पतंजलि योग-सूत्र भाग 5 में मोक्ष को कैसे परिभाषित करते हैं?u003c/strongu003e
ओशो मोक्ष को आत्मा की पूर्ण मुक्ति और जागृति की अवस्था बताते हैं। यह अवस्था योग का सर्वोच्च लक्ष्य है, जहां साधक संसार के बंधनों से पूरी तरह मुक्त हो जाता है।
u003cstrongu003eक्या पतंजलि योग-सूत्र भाग 5 ध्यान की गहरी अवस्थाओं पर केंद्रित है?u003c/strongu003e
हां, इस खंड में ध्यान की गहरी अवस्थाओं पर विस्तार से चर्चा की गई है। ओशो ध्यान और समाधि की प्रक्रियाओं को आधुनिक संदर्भ में समझाते हैं और साधकों को इन अवस्थाओं तक पहुंचने के मार्गदर्शन देते हैं।
u003cstrongu003eओशो की व्याख्या पतंजलि योग-सूत्र 5 में कैसे विशेष है?u003c/strongu003e
ओशो की व्याख्या आधुनिक जीवन के संदर्भ में योग के गहन सिद्धांतों को सरल बनाती है। वे पारंपरिक टीकाओं की तुलना में जटिल अवधारणाओं को दैनिक जीवन में प्रासंगिक बनाते हैं।
u003cstrongu003eपतंजलि योग-सूत्र भाग 5 में समाधि का क्या महत्व है?u003c/strongu003e
समाधि योग का अंतिम लक्ष्य है, जहां साधक अपने वास्तविक स्वरूप का साक्षात्कार करता है। ओशो इसे आत्मिक शांति और परम जागृति की अवस्था के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो मोक्ष की ओर ले जाती है।
Additional information
Weight | 700 g |
---|---|
Dimensions | 22.89 × 15.24 × 3 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8184191359 |
Pages | 144 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Fusion Books |
ISBN 10 | 8184191359 |
स्वभाव को लाओत्सु ताओ कहता है, पतंजलि कैवल्य कहते हैं, महावीर मोक्ष कहते हैं, बुद्ध निर्वाण कहते हैं। लेकिन तुम इसको चाहे कुछ भी नाम दो- इसका न कोई नाम है और न कोई रूप – यह तुम्हारे भीतर है वर्तमान, ठीक इसी क्षण में। तुमने सागर को खो दिया था क्योंकि तुम अपने स्व से बाहर आ गए थे। तुम बाहर के संसार में बहुत अधिक दूर चले गए थे। भीतर की ओर चलो। इसको अपनी तीर्थयात्रा बन जाने दो- भीतर चलो।
ISBN10-8184191359 ISBN10-8184191359
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