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Prabhavati (प्रभावती)

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महाकवि निराला के उपन्यास-साहित्य में प्रभावती एक ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति के रूप में चर्चित है। इसका कथा-फलक पृथ्वीराज-जयचन्द-कालीन राजाओं और सामन्तों के पारस्परिक संघर्ष पर आधारित है। प्रभावती के स्वाभिमानी नारी-चरित्र के पीछे निराला का उद्देश्य आधुनिक भारतीयों के संघर्ष चेतना का विकास करना भी रहा है।

About the Author

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फरवरी, सन् १८९९ में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। निराला की शक्ति यह है कि वे चमत्कार के भरोसे अकर्मण्य नहीं बैठ जाते और संघर्ष की वास्तविक चुनौती से आँखें नहीं चुराते। कहीं-कहीं रहस्यवाद के फेर में निराला वास्तविक जीवन-अनुभवों के विपरीत चलते हैं। हर ओर प्रकाश फैला है, जीवन आलोकमय महासागर में डूब गया है, इत्यादि ऐसी ही बातें हैं। लेकिन यह रहस्यवाद निराला के भावबोध में स्थायी नहीं रहता, वह क्षणभंगुर ही साबित होता है। अनेक बार निराला शब्दों, ध्वनियों आदि को लेकर खिलवाड़ करते हैं। इन खिलवाड़ों को कला की संज्ञा देना कठिन काम है। लेकिन सामान्यत: वे इन खिलवाड़ों के माध्यम से बड़े चमत्कारपूर्ण कलात्मक प्रयोग करते हैं। इन प्रयोगों की विशेषता यह है कि ये विषय या भाव को अधिक प्रभावशाली रूप में व्यक्त करने में सहायक होते हैं। निराला के प्रयोगों में एक विशेष प्रकार के साहस और सजगता के दर्शन होते हैं। यह साहस और सजगता ही निराला को अपने युग के कवियों में अलग और विशिष्ट बनाती है।
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Prabhavati (प्रभावती)
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महाकवि निराला के उपन्यास-साहित्य में प्रभावती एक ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति के रूप में चर्चित है। इसका कथा-फलक पृथ्वीराज-जयचन्द-कालीन राजाओं और सामन्तों के पारस्परिक संघर्ष पर आधारित है। प्रभावती के स्वाभिमानी नारी-चरित्र के पीछे निराला का उद्देश्य आधुनिक भारतीयों के संघर्ष चेतना का विकास करना भी रहा है।

About the Author

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल ११, संवत् १९५५, तदनुसार २१ फरवरी, सन् १८९९ में हुआ था। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा १९३० में प्रारंभ हुई। निराला की शक्ति यह है कि वे चमत्कार के भरोसे अकर्मण्य नहीं बैठ जाते और संघर्ष की वास्तविक चुनौती से आँखें नहीं चुराते। कहीं-कहीं रहस्यवाद के फेर में निराला वास्तविक जीवन-अनुभवों के विपरीत चलते हैं। हर ओर प्रकाश फैला है, जीवन आलोकमय महासागर में डूब गया है, इत्यादि ऐसी ही बातें हैं। लेकिन यह रहस्यवाद निराला के भावबोध में स्थायी नहीं रहता, वह क्षणभंगुर ही साबित होता है। अनेक बार निराला शब्दों, ध्वनियों आदि को लेकर खिलवाड़ करते हैं। इन खिलवाड़ों को कला की संज्ञा देना कठिन काम है। लेकिन सामान्यत: वे इन खिलवाड़ों के माध्यम से बड़े चमत्कारपूर्ण कलात्मक प्रयोग करते हैं। इन प्रयोगों की विशेषता यह है कि ये विषय या भाव को अधिक प्रभावशाली रूप में व्यक्त करने में सहायक होते हैं। निराला के प्रयोगों में एक विशेष प्रकार के साहस और सजगता के दर्शन होते हैं। यह साहस और सजगता ही निराला को अपने युग के कवियों में अलग और विशिष्ट बनाती है।

Additional information

Author

Suryakant Tripathi 'Nirala'

ISBN

9789355990808

Pages

48

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/dp/9355990804

Flipkart

https://www.flipkart.com/prabhavati/p/itmf33c90b7b1940?pid=9789355990808

ISBN 10

9355990804