प्राण साहब, जिन्हें चाचा चौधरी के रचियता के प में जाना जाता है, अपनी कहानियों के लिए प्रेरणा सबह क सैर के दौरान अपने आसपास के वातावरण से लेते थे। एक कवि या काट ु र्निस्ट क तरह, वह हमारे जीवन के छोटे-छोटे शरारती या सीधे-सादे पलों को एक कलाकार क नजर से देखते थे। जिस प्रकार एक कवि ‘तेरा आंचल लहराया’ या ‘मन्द मन्द मस्कान लिए कौन आया ‘ जैसे भावों को व्य करता है, उसी प्रकार एक काटूर्निस्ट इन भावनाओ को अपनी रेखाओ में ड ं बोकर एक कलाकृति में बदल देता है।
अपने प्रसिद्ध चरित्र चाचा चौधरी और सहायक चित्रों के माध्यम से, प्राण साहब कॉमिक्स के पों पर एक चटक भर म स्कान ला देते थे। यह विचित्र बात है कि उन्होंने कभी ख द को चित्रित नहीं किया , जबकि एक गंभीर स्वभाव के होते हए भी दूसरों को हँसी का संदेश देते थे।
हिन्दी सीखने क ओर लोगों को आकर्षित करने में डायमंड बक्स का विशेष योगदान रहा है। यह प्रकाशन चाचा चौधरी, चन्द्रकांता और गुलशन नन्दा जैसे लोकप्रिय लेखको का प्रकाशक है , इन लोगो नेही हिन्दी पाठकों को अपनी ओर आकर्षित किया जो हमारे लिए गर्व क बात है। चाचा चौधरी के निर्माण में प्राण साहब क सोच न के वल एक लेखक के प में बिल्क एक कलाकार के प में भी निहित है। उन्होंने जीवन क छोटी-छोटी बातों में भी हास्य ढूँढ़कर उसे कॉमिक्स का प दिया। अमिताभ बच्चन, अ य कुमार और कपिल शर्मा जैसेहिस्तयों ने भी कहा है कि तुम्हारा दिमाग चाचा चौधरी क तरह कंप्यटर जैसा नहीं है।
1979 से 2000 तक चाचा चौधरी सवर्श्रे बिक्रा वाली कथा रही। उस समय, इसक कॉमिक्स पहले दिन 10 पैसे के किराए पर 30 लोग पढ़ लेते थे और फिर भी 3 पये में बिक जाती थी। अ णाचल से गजरात और कश्मीर से कन्याक मारी तक, एक ही नाम लोकप्रिय था- चाचा चौधरी। 1991 में, इसक लोकप्रियता को देखते हए, इसे अंग्रेजी, मराठी, बंगाली और गजराती में भी प्रकाशित करना पड़ा।
प्राण साहब के कॉमिक्स में हास्य और मनोरंजन के साथ-साथ देश को एकजट करने क शिक , देश प्रेम और बच्चों के क रियर जैसे विषय भी शामिल थे। 1980 में उन्होंने एक कॉमिक्स श्रृंखला बनाई जिसमें चाचा चौधरी अंतर र क सैर करते हैं। उनकी राका श्रृंखला अन पम थी , और इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें परस्कार भी मिला। उन्हेंभारत सरकार द्वारा पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें विदेशों में भी कई परस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें अपने काम से इतना लगाव था कि परस्कार लेने के लिए भी उन्हें समय निकालना पड़ता था। वह समय के पाब ंद और एक नेक इसान थे। उनके जैसा स्पष्ट व्यक्तित्व और मौजी स्वभाव वाला व्यक्त शायद ही देखने को मिले। मैं उनके साथ बिताए पलों, हर हफ्ते उनसे मिलने और दिल्ली पस्तक मेले में उन्हें म ख्य अतिथि के प में ले जाने को याद करता ह। उन्होंने सैकड़ों बच्चों से म ँ लाकात क और पेंिट ंग प्रतियोगिताओ में बच्चों के साथ बच्चे बनकर दिल से मिले। उनका एक छोटा पिरवार था, जिसमें बेटा निखिल बहज्योित और बेटी शैली हैं। आशाजी (प्राण क पत्नी) का हमारेपिरवार के साथ बहत ही आत्मीय संबंध था। कैं सर जैसी गंभीर बीमारी ने उन्हें हमसे छीन लिया। भारत को उनकी अभी बहत जररत थी। हसाना सबसे म ं िश्कल कला है, जबकि भावक और दिल दहलाने वाले दृश्य बनाना उतना म िश्कल नहीं है। आज के तनावप णर् जीवन में खलकर ह सने के पल कहाँ मिलते हैं ?
मझे आज भी याद है प्राण साहब कपसंदीदा पियं जो वह अक्सर गनगु नाते थे :-
“कौन कहता है खदा दिखाई नहीं देता ,
एक वो ही तो दिखता है, जब कोई दिखाई नहीं देता।”
आँखें तो बंद हैं, पर दिल में उजाला है,
कहीं न कहीं कोई तो देखने वाला है।
जब हर तरफ़ अंधेरा घना लगे,
एक रौशनी क संभावना तब भी जगे।
उनकी यादें हमेशा रहेंगी क्योंकि कला कभी नहीं मरती, और उनकी कला उन्हें जीवित रखेगी।
प्राण साहब मेरेन के वल दोस्त थे बिल्क मेरी सफलता के संरक्षक भी थे। ऐसे दोस्त मिलना भाग्य क बात है जो आपकी सफलता पर गर्व करे। मैंखद और प्राण साहब को ऐसे ही भाग्यशाली मानता ह।ँ मैं आशाजी, निखिल शैली और ज्योत को उनके जीवन में सफलता क शभकामनाए देता हँऔर डॉ. विनोद शर्मा को इस पस्तक को लिखने के लिए बधाई देता ह। यह प स्तक मेरेकहने पर लिखी गई और प्राण जी वास्तव में इसके हकदार थे। उन पर और भी बहत कुछ लिखा जाना चाहिए। उनके बनाए चाचा चौधरी, िबल्ल-ूिपक, रमन, चन्नी चाची, सोनी सम्पत, पलटू और अन्य कई चरित्र हैं। उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था। काटूर्न क कला, जिसे एआई तेजी से बढ़ा कर रहा है , लेिकन प्राण साहब का जोश अभी भी बरकरार है। इस अवसर पर, मैंपस्तकों को पढ़ने क पर ंपरा को बनाए रखने और लिखने का प्रयास करने का आग्रह करता ह। एआई अमे रका में ँ 60 साल पहले आ गया था और यह पस्तक िफर आएगी चाहे एआई के फॉरमेट में ही क्यों न आये, यग बदलेगा , िनि�त प से बदलेगा…
आभार, धन्यवाद।
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