Prem Diwani (प्रेम दीवानी)
₹400.00
- About the Book
- Book Details
प्रेम का एक रंग होता है, एक भाव और एक दिशा। उस पर दूजा रंग नहीं चढ़ सकता। फिर मीरा पर कैसे चढ़ता ! वह तो प्रेम दीवानी थी।
मीरा ने हृदय में डूबकर उसकी गहराई से ऐसा गाया कि वह अमृत वाणी गा उठा।
मीरा ने जो गाया, जिसके लिए गाया, वह उसमें ऐसा डूबकर गाया कि उसमें और मीरा में कोई भेद ही नहीं रहा। मीरा उसकी होकर रह गई। उसने अपने को भुला दिया। उसे अपनी सुध-बुध ही नहीं रही।
दीवानापन पगला देता है। एक बार देखो कृष्ण के प्रेम का ऐसा दीदार करके, तो फिर किसी अन्य का दीदार करने की चाह ही नहीं रहेगी।
अपनी चाह को किसी दूसरों की चाह बना देना प्रेम की पराकाष्ठा है। मीरा में वह थी। मीरा ने गाया है कि “हेरी, मैं तो प्रेम दीवानी, म्हारा दर्द न जाने कोय,” वह उसने अन्त करके अन्यतम गहराइयों में उतर कर गाया , जहां उसके अलावा कोई दूसरा नहीं।
वास्तव में मीरा प्रेम की ऐसी पुजारिन है कि उससे समग्र प्रेम की गहनतम अनुभूति होने लगती है कि समर्पण भाव साकार हो उठता है।
About the Author
सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म २ मई १९३८, अंबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कालिज, आगरा और बीकानेर में। शिक्षा : एम. ए. पी-एच. डी. डी लिट् आचार्य।। साहित्य : चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चित हुए दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का। सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा। ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुधा, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति। नाटक : संध्या को चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गूंगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति। कथा : गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि अनेक उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित। अनेक कृतिया पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार। आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।
Additional information
Author | Dr. Rajendra Mohan Bhatnagar |
---|---|
ISBN | 9789356842335 |
Pages | 464 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/prem-diwani/p/itm63d8001f154e9?pid=9789356842335 |
ISBN 10 | 9356842337 |
प्रेम का एक रंग होता है, एक भाव और एक दिशा। उस पर दूजा रंग नहीं चढ़ सकता। फिर मीरा पर कैसे चढ़ता ! वह तो प्रेम दीवानी थी।
मीरा ने हृदय में डूबकर उसकी गहराई से ऐसा गाया कि वह अमृत वाणी गा उठा।
मीरा ने जो गाया, जिसके लिए गाया, वह उसमें ऐसा डूबकर गाया कि उसमें और मीरा में कोई भेद ही नहीं रहा। मीरा उसकी होकर रह गई। उसने अपने को भुला दिया। उसे अपनी सुध-बुध ही नहीं रही।
दीवानापन पगला देता है। एक बार देखो कृष्ण के प्रेम का ऐसा दीदार करके, तो फिर किसी अन्य का दीदार करने की चाह ही नहीं रहेगी।
अपनी चाह को किसी दूसरों की चाह बना देना प्रेम की पराकाष्ठा है। मीरा में वह थी। मीरा ने गाया है कि “हेरी, मैं तो प्रेम दीवानी, म्हारा दर्द न जाने कोय,” वह उसने अन्त करके अन्यतम गहराइयों में उतर कर गाया , जहां उसके अलावा कोई दूसरा नहीं।
वास्तव में मीरा प्रेम की ऐसी पुजारिन है कि उससे समग्र प्रेम की गहनतम अनुभूति होने लगती है कि समर्पण भाव साकार हो उठता है।
About the Author
सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म २ मई १९३८, अंबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कालिज, आगरा और बीकानेर में। शिक्षा : एम. ए. पी-एच. डी. डी लिट् आचार्य।। साहित्य : चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चित हुए दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का। सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा। ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुधा, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति। नाटक : संध्या को चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गूंगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति। कथा : गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि अनेक उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित। अनेक कृतिया पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार। आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।
ISBN10-9356842337