हालिया आन्दोलनों में आम आदमी बनाम खास आदमी के नारे बुलन्द हुए, जातीयता, धार्मिक एकजुटता के स्थान पर राष्ट्रीयता ने ज़ोर पकड़ा किन्तु अपेक्षित परिणाम तक आन्दोलन पहुंच नहीं सके। प्रस्तुत पुस्तक ”कैंडिल मार्च“ जलते दिये की बुझती लौ- में सरकार, समाज, पुलिस, कानून और कुछ महत्वपूर्ण आन्दोलन के नकारात्मक पहलुओं की जांच पड़ताल बड़ी गहनता से कर लेखक ने निष्पक्ष पत्रकारिता के दायित्व को बखूबी निभाया है। लेखक की सकारात्मक सोच और अर्थपूर्ण उद्देश्य निश्चित ही समाज के हित में है। पत्रकार के कलम की सियाही लोगों के ज़ेहन को रौशन करेगी और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिए प्रेरित करेगी। आन्दोलनो की समीक्षा दो पंक्तियों में पूर्ण लगती है।
ISBN10-9350839512
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