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Gyanyog by Swami Vivekananda in Hindi (ज्ञानयोग)-In Paperback

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ISBN10-: 9363200043

किताब के बारे में

ज्ञानयोग – : स्वामी विवेकानंद की एक महत्वपूर्ण कृति है, जो ज्ञान के मार्ग पर केंद्रित है। इस पुस्तक में, स्वामीजी ने वेदांत दर्शन के गहन सिद्धांतों को सरल और सुगम भाषा में प्रस्तुत किया है। वे बताते हैं कि सच्चा ज्ञान आत्मा की प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ उसके संबंध को समझने में निहित है।स्वामीजी तर्क और बुद्धि के माध्यम से आध्यात्मिक सत्य की खोज पर जोर देते हैं। वे अंधविश्वासों और कर्मकांडों से दूर रहने तथा आत्म-विश्लेषण और मनन के द्वारा सत्य को जानने का आह्वान करते हैं। पुस्तक में, वे विभिन्न दार्शनिक अवधारणाओं जैसे माया, ब्रह्म और आत्मा की व्याख्या करते हैं, जिससे पाठकों को वास्तविकता की गहरी समझ मिलती है।ज्ञानयोग उन लोगों के लिए एक मार्गदर्शिका है जो जीवन के अंतिम सत्य को जानने की इच्छा रखते हैं और पारंपरिक धार्मिक विश्वासों से परे जाकर स्वयं अनुभव करना चाहते हैं। यह पुस्तक पाठकों को आत्म-ज्ञान की ओर प्रेरित करती है और उन्हें अपनी आंतरिक शक्ति और क्षमता को पहचानने में मदद करती है। यह पुस्तक ज्ञान के महत्व, आध्यात्मिक जिज्ञासा और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर एक शक्तिशाली अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।

लेखक के बारे में

स्वामी विवेकानंद, जिनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, इनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में अटॉर्नी (वकील) थे और उनकी माता भुवनेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं। बचपन से ही नरेंद्र कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी धर्म तथा आध्यात्म में गहरी रुचि थी।शुरुआत में वे ब्रह्म समाज से जुड़े, लेकिन उन्हें वहां संतोष नहीं मिला। अपनी आध्यात्मिक जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए वे कई साधु-संतों के पास गए और अंततः उन्हें रामकृष्ण परमहंस में अपना गुरु मिला। रामकृष्ण परमहंस के रहस्यमय व्यक्तित्व और शिक्षाओं ने नरेंद्र के जीवन को पूरी तरह बदल दिया।25 वर्ष की आयु में नरेंद्रनाथ ने संन्यास ले लिया और ‘विवेकानंद’ के नाम से जाने जाने लगे। उन्होंने पूरे भारतवर्ष की पैदल यात्रा की और देश की गरीबी और दुर्दशा को करीब से देखा। उनका मानना था कि ‘मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है। 1893 में, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (अमेरिका) में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत और सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। उनके प्रभावशाली भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता से परिचित कराया। उन्होंने वेदांत और योग को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने 1897 में अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की स्थापना की। यह मिशन शिक्षा, चिकित्सा सहायता, आपदा राहत और जनजातियों के कल्याण जैसे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो’ का नारा दिया।वे भारतीय राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रतीक और एक देशभक्त संत के रूप में जाने जाते हैं। उनका जन्मदिन 12 जनवरी को भारत में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। 4 जुलाई, 1902 को मात्र 39 वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।

ज्ञानयोग पुस्तक किसने लिखी है और इसका मुख्य विषय क्या है?

यह पुस्तक स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखी गई है और इसका मुख्य विषय है ज्ञान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार और सत्य की खोज।

ज्ञानयोग किस प्रकार का आध्यात्मिक मार्ग है?

यह वह मार्ग है जिसमें व्यक्ति तर्क, विवेक और आत्म-विश्लेषण के द्वारा आध्यात्मिक सत्य की खोज करता है।

स्वामी विवेकानंद ज्ञानयोग में किस दर्शन का वर्णन करते हैं?

वे वेदांत दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों को सरल भाषा में प्रस्तुत करते हैं।

ज्ञानयोग और भक्तियोग में क्या अंतर है?

ज्ञानयोग तर्क और ज्ञान पर आधारित है जबकि भक्तियोग भाव और समर्पण पर आधारित होता है।

ज्ञानयोग किस प्रकार से जीवन में उपयोगी है?

यह व्यक्ति को वास्तविकता को समझने, आत्मबोध प्राप्त करने, और जीवन को गहराई से देखने में मदद करता है।

Additional information

Weight 0.175 g
Dimensions 21.59 × 13.97 × 1.4 cm
Author

Swami Vivekanand

Pages

184

Language

Hindi

Format

Paperback

Publisher

Diamond Books