Purab Ke Parinde

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‘पुरुष वही लिखता या दिखाना चाहता है जैसा वह स्त्री के बारे में सोचता है या उससे वह जिस तरह की उम्मीद करता है। स्त्री ही स्त्री की थाह छू सकती है, पुरुष नहीं। स्त्री के भीतरी अस्तित्व को पुरुष चाहकर भी नहीं उकेर सकता। तुम लोगो में पौरुषत्व का पफैक्टर कामन होने के कारण, तुम सारे पुरुष स्त्री को उसी चश्मे से देखते हो। तुम आज के पुरुष लेखकों के वल्गर कचरे की बात करते हो, अरे मैं तो वात्सायन के कामसूत्रा को भी झूठलाती हूं। वात्सायन कौन होता है, साला! स्त्री को 64 कलाओं मे विभाजित करने वाला जबकि वह स्वयं ब्रम्हचारी था। उसने, अपने शिष्यों द्वारा राजप्रसादों मंे देखे हुए भोगी, कामी और वासना में अंधे राजाओं के अयाशीपूर्ण घृणित कामकृत्यों को उकेरने का काम मात्रा किया और कुछ नहीं…।’
‘यह उपन्यास महज चंद दोस्तों की जि़न्दगी की दास्तां ही नहीं बल्कि युवाओं के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ उन्हें अपनी मंजि़ल तक पहुंचाने वाली एक गाइडलाइन भी है।’

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‘पुरुष वही लिखता या दिखाना चाहता है जैसा वह स्त्री के बारे में सोचता है या उससे वह जिस तरह की उम्मीद करता है। स्त्री ही स्त्री की थाह छू सकती है, पुरुष नहीं। स्त्री के भीतरी अस्तित्व को पुरुष चाहकर भी नहीं उकेर सकता। तुम लोगो में पौरुषत्व का पफैक्टर कामन होने के कारण, तुम सारे पुरुष स्त्री को उसी चश्मे से देखते हो। तुम आज के पुरुष लेखकों के वल्गर कचरे की बात करते हो, अरे मैं तो वात्सायन के कामसूत्रा को भी झूठलाती हूं। वात्सायन कौन होता है, साला! स्त्री को 64 कलाओं मे विभाजित करने वाला जबकि वह स्वयं ब्रम्हचारी था। उसने, अपने शिष्यों द्वारा राजप्रसादों मंे देखे हुए भोगी, कामी और वासना में अंधे राजाओं के अयाशीपूर्ण घृणित कामकृत्यों को उकेरने का काम मात्रा किया और कुछ नहीं…।’
‘यह उपन्यास महज चंद दोस्तों की जि़न्दगी की दास्तां ही नहीं बल्कि युवाओं के व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ उन्हें अपनी मंजि़ल तक पहुंचाने वाली एक गाइडलाइन भी है।’

Additional information

Author

Sushil Gajbhiye

ISBN

9789350831939

Pages

96

Format

Paper Back

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

9350831937