Pyar, Kitni Baar! (प्यार, कितनी बार!)

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उसकी प्रार्थना ईश्वर के द्वारा तत्काल स्वीकार कर ली गयी। रात के खाने तक उसे पता चल गया कि आये हुए सज्जन चाचा के बहुत अच्छे मित्र हैं। उनकी पुत्री का नाम रागिनी है और उसने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी. ए. में प्रवेश लिया है। अभी हॉस्टल मिलने में कुछ दिन लगेंगे तब तक वह यहीं रहेगी। माता- पिता अपनी पुत्री को यहाँ छोड़ने आए हैं।
रात में जब वह बिस्तर पर लेटा तो स्वयं को एक नयी सुखद अनुभूति से लिपटा हुआ पाया। सोचने लगा कि अगर दस दिन भी यहाँ रही तो अच्छी खासी जान पहचान हो जायेगी। उसके बाद भी विश्विद्यालय कितनी दूर है ही । छुट्टी और त्योहारों पर भी वह यहाँ आया ही करेगी। मुलाकात की हर संभावना स्वतः उसकी आँखों के सम्मुख एक – एक कर प्रकट होने लगी। यह तो प्रतिभा से भी अधिक सुंदर हैं! इसके केश कितने घने और लम्बे हैं। प्रतिभा के बाल तो कंधे तक कटे हुए थे। इसके नैन-नक्श कितने तीखे हैं और यह प्रतिभा से ऊँची भी है। हाँ प्रतिभा इससे अधिक गोरी थी, लेकिन यह उससे कहीं अधिक सुन्दर है। बिलकुल सिने जैसी दिखती है।
अब आशीष को विधाता की सारी चाल समझ में आने लगी। क्यों किसी लड़की ने आज तक उससे प्रेम नहीं किया? क्यों प्रतिभा उसे नहीं मिली? क्यों उसका मन तैयारी में नहीं लगा और उसका कहीं चयन नहीं हुआ ? क्यों उसे बनारस छोड़कर लखनऊ आना पड़ा? सारे प्रश्नों का बस एक ही उत्तर था – रागिनी ।

About the Author

प्रताप नारायण सिंह (जन्म – उत्तर प्रदेश)
एक लोकप्रिय उपन्यासकार, जिनकी अब तक की प्रकाशित सभी कृतियाँ पाठकों के द्वारा बहुत ही पसंद की गई हैं। प्रस्तुत है उनकी दसवीं पुस्तक, उपन्यास ” प्यार कितनी बार “

प्रकाशित कृतियाँ-
1- उपन्यास- ‘धनंजय’, ‘अरावली का मार्तण्ड’, ‘युग पुरुष : सम्राट विक्रमादित्य’, ‘योगी का रामराज्य, ‘जिहाद’, ‘प्यार कितनी बार’।
2- कहानी संग्रह – ‘राम रचि राखा’।
3- काव्य – ‘ सीता : एक नारी’ (खंडकाव्य), ‘बस इतना ही करना’ (काव्य-संग्रह)।
४- वैचारिक : मैनेजमेंट गुरु कबीर

पुरस्कार- ‘जयशंकर प्रसाद पुरस्कार’, हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश ।

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उसकी प्रार्थना ईश्वर के द्वारा तत्काल स्वीकार कर ली गयी। रात के खाने तक उसे पता चल गया कि आये हुए सज्जन चाचा के बहुत अच्छे मित्र हैं। उनकी पुत्री का नाम रागिनी है और उसने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी. ए. में प्रवेश लिया है। अभी हॉस्टल मिलने में कुछ दिन लगेंगे तब तक वह यहीं रहेगी। माता- पिता अपनी पुत्री को यहाँ छोड़ने आए हैं।
रात में जब वह बिस्तर पर लेटा तो स्वयं को एक नयी सुखद अनुभूति से लिपटा हुआ पाया। सोचने लगा कि अगर दस दिन भी यहाँ रही तो अच्छी खासी जान पहचान हो जायेगी। उसके बाद भी विश्विद्यालय कितनी दूर है ही । छुट्टी और त्योहारों पर भी वह यहाँ आया ही करेगी। मुलाकात की हर संभावना स्वतः उसकी आँखों के सम्मुख एक – एक कर प्रकट होने लगी। यह तो प्रतिभा से भी अधिक सुंदर हैं! इसके केश कितने घने और लम्बे हैं। प्रतिभा के बाल तो कंधे तक कटे हुए थे। इसके नैन-नक्श कितने तीखे हैं और यह प्रतिभा से ऊँची भी है। हाँ प्रतिभा इससे अधिक गोरी थी, लेकिन यह उससे कहीं अधिक सुन्दर है। बिलकुल सिने जैसी दिखती है।
अब आशीष को विधाता की सारी चाल समझ में आने लगी। क्यों किसी लड़की ने आज तक उससे प्रेम नहीं किया? क्यों प्रतिभा उसे नहीं मिली? क्यों उसका मन तैयारी में नहीं लगा और उसका कहीं चयन नहीं हुआ ? क्यों उसे बनारस छोड़कर लखनऊ आना पड़ा? सारे प्रश्नों का बस एक ही उत्तर था – रागिनी ।

About the Author

प्रताप नारायण सिंह (जन्म – उत्तर प्रदेश)
एक लोकप्रिय उपन्यासकार, जिनकी अब तक की प्रकाशित सभी कृतियाँ पाठकों के द्वारा बहुत ही पसंद की गई हैं। प्रस्तुत है उनकी दसवीं पुस्तक, उपन्यास ” प्यार कितनी बार “

प्रकाशित कृतियाँ-
1- उपन्यास- ‘धनंजय’, ‘अरावली का मार्तण्ड’, ‘युग पुरुष : सम्राट विक्रमादित्य’, ‘योगी का रामराज्य, ‘जिहाद’, ‘प्यार कितनी बार’।
2- कहानी संग्रह – ‘राम रचि राखा’।
3- काव्य – ‘ सीता : एक नारी’ (खंडकाव्य), ‘बस इतना ही करना’ (काव्य-संग्रह)।
४- वैचारिक : मैनेजमेंट गुरु कबीर

पुरस्कार- ‘जयशंकर प्रसाद पुरस्कार’, हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश ।

Additional information

Author

Pratap Narayan Singh

ISBN

9789356842656

Pages

614

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/dp/9356842655

Flipkart

https://www.flipkart.com/pyar-kitni-baar/p/itmb4d35e284a144?pid=9789356842656

ISBN 10

9356842655