Rajendra Awasthi Ki Shreshtha Kavitayen (राजेंद्र अवस्थी की श्रेष्ठ कविताएं)

200.00

प्रकृति चेतना में आस्था की अनुभूति कराती उनकी कविता ‘गगन वह छुप गया देखो बदरिया छाए हैं’ है। इसी क्रम में ‘लो आज मधु मास आया’, ‘सुखी शरद में विश्व जब …’ ‘पनघट पर’, ‘कितना विकट घना अँधेरा, ‘जब रजनी की गीली पलकें, भर देती झींगुर के स्वर’, हार, ‘आदि कविताओं में प्रकृति और मानवीय भावों के पारस्परिक संबंधों को उद्घाटित करने का प्रयत्न है। अनेक कविताओं में यथार्थवादी अभिव्यक्ति भी है –
मेरे सोये भाग्य जगा दो, घर में चाहे आग लगा दो
कवि ने अपने किशोर प्रेम को भी अपने काव्य-यात्रा का विषय बनाया है। कभी अनजान, कभी एक तरफा प्यार की हिलोरें कवि को इतना विचलित करती हैं कि वह कुछ ऐसे उद्बोधन को ही सब कुछ मान लेता है यदि प्रिय तुम इसमें न अपना अपमान समझो मेरी पूजा स्वीकार न हो, रहने दो, आसुओं से यदि मोह न हो, बहने दो, सपनों का भव्य भवन ढहने दो., पर कम से कम दो चार जनों के आगे तुम मेरे हो इतना कह दो | प्रियतम से दूर रहना भी एक व्यथा है और उस व्यथा के दर्द को उभारती उनकी कविता ‘स्मृति’ है।
आज प्रिय से दूर हूँ, न जग में आराम विधुर सा पढ़ा हूँ, रहते प्रिय धाम । आज गई और चली गई – छोड़ मुझे कितनी दूर । बन गया हाय । उजेला भी – सघन तिमिर भरपूर ॥

About the Author

डॉ. शिवशंकर अवस्थी बयालिस वर्ष अध्यापन कार्य कर दिल्ली विश्वविद्यालय के पी. जी. डी.ए.वी. महाविद्यालय से एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान संकाय से सेवानिवृत्त हुए। राजनीति विज्ञान पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में पुस्तकों के अलावा तीन कहानी संग्रह, काल चिंतन के सात खंडों का संपादन, काव्य संग्रह है “ तुम्हें क्या मालूम ” । दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से लगभग ४०० से अधिक एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं।
राष्ट्रीय पुस्तक संवर्धन परिषद एवं कॉपीराइट प्रवर्तन परिषद एवं हिंदी अकादमी दिल्ली के कार्यकारिणी के सदस्य हो । वर्तमान में आई. आर. आर. ओ. के अध्यक्ष, ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव और हिन्दी अकादमी की कार्यकारिणी के सदस्य है।

Additional information

Author

Dr. Shivshankar Awasthi

ISBN

9789356847439

Pages

136

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Junior Diamond

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https://www.amazon.in/dp/9356847436

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https://www.flipkart.com/rajendra-awasthi-ki-shreshtha-kavitayen-hindi/p/itm5b8889efcb962?pid=9789356847439

ISBN 10

9356847436

प्रकृति चेतना में आस्था की अनुभूति कराती उनकी कविता ‘गगन वह छुप गया देखो बदरिया छाए हैं’ है। इसी क्रम में ‘लो आज मधु मास आया’, ‘सुखी शरद में विश्व जब …’ ‘पनघट पर’, ‘कितना विकट घना अँधेरा, ‘जब रजनी की गीली पलकें, भर देती झींगुर के स्वर’, हार, ‘आदि कविताओं में प्रकृति और मानवीय भावों के पारस्परिक संबंधों को उद्घाटित करने का प्रयत्न है। अनेक कविताओं में यथार्थवादी अभिव्यक्ति भी है –
मेरे सोये भाग्य जगा दो, घर में चाहे आग लगा दो
कवि ने अपने किशोर प्रेम को भी अपने काव्य-यात्रा का विषय बनाया है। कभी अनजान, कभी एक तरफा प्यार की हिलोरें कवि को इतना विचलित करती हैं कि वह कुछ ऐसे उद्बोधन को ही सब कुछ मान लेता है यदि प्रिय तुम इसमें न अपना अपमान समझो मेरी पूजा स्वीकार न हो, रहने दो, आसुओं से यदि मोह न हो, बहने दो, सपनों का भव्य भवन ढहने दो., पर कम से कम दो चार जनों के आगे तुम मेरे हो इतना कह दो | प्रियतम से दूर रहना भी एक व्यथा है और उस व्यथा के दर्द को उभारती उनकी कविता ‘स्मृति’ है।
आज प्रिय से दूर हूँ, न जग में आराम विधुर सा पढ़ा हूँ, रहते प्रिय धाम । आज गई और चली गई – छोड़ मुझे कितनी दूर । बन गया हाय । उजेला भी – सघन तिमिर भरपूर ॥

About the Author

डॉ. शिवशंकर अवस्थी बयालिस वर्ष अध्यापन कार्य कर दिल्ली विश्वविद्यालय के पी. जी. डी.ए.वी. महाविद्यालय से एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान संकाय से सेवानिवृत्त हुए। राजनीति विज्ञान पर हिन्दी एवं अंग्रेजी में पुस्तकों के अलावा तीन कहानी संग्रह, काल चिंतन के सात खंडों का संपादन, काव्य संग्रह है “ तुम्हें क्या मालूम ” । दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से लगभग ४०० से अधिक एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं।
राष्ट्रीय पुस्तक संवर्धन परिषद एवं कॉपीराइट प्रवर्तन परिषद एवं हिंदी अकादमी दिल्ली के कार्यकारिणी के सदस्य हो । वर्तमान में आई. आर. आर. ओ. के अध्यक्ष, ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव और हिन्दी अकादमी की कार्यकारिणी के सदस्य है।

ISBN10-9356847436