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Ret Ki Rabab PB Hindi

125.00

प्रबंधन में पोस्टग्रेजुएशन के पश्चात् कुछ वर्ष नौकरी, साथ-साथ ओशो कार्य! कालान्तर में नौकरी छोड़ पूर्णरूपेण ओशो कार्य एवं लेखन में संलग्न! अनेक पुस्तकों के अनुवाद व प्रकाशन ! गीत, नाटक, प्रहसन, शायरी, कथाएं इत्यादि लिखे। साथ ही साथ अभिनय एवं संगीत से गहराई से जुड़े ! कई राष्ट्रीय स्तर की नाट्य-प्रस्तुतियों का संपादन एवं संचालन ! वर्तमान में ओशो सर्किल पफाउण्डेशन के माध्यम से कार्यरत, ध्यान शिविरों व वर्कशॉप्स का संचालन! यह रचना ‘रेत की रबाब’ सूपिफयों की बेबूझ दुनियाँ को ज़ाहिर करती दस्तावेज़ है। सदियों से बग़ावती इश्क़ का परचम उठाए ये दीवाने, आज भी रहस्य के परदे के पीछे से ही बोलते हैं। अरब के गर्म रेगिस्तानों में पैदा हुई इस रबाब के सुर कितने सुरीले हैं, इसी हकीकत को ज़ाहिर करती है – रेत की रबाब। सूप़फी प़फसानों पर लेखक की पकड़, ज़रुरी बातों की तप़फसील और मुलायम क़लम पाठक को सूपि़फयों के बहुत क़रीब ले आती है। सूपि़फयों में प्रचलित किताब के उन्वान खुदा के निन्यानवे नामों की याद दिलाते हैं। शायद ‘रेत की रबाब’ से सूपि़फयों के बारे में छाई धुंध कुछ और साप़फ हो सके।

Additional information

Author

Antar Jagdish

ISBN

9789350836187

Pages

160

Format

Paper Back

Language

Hindi

Publisher

Jr. Diamond

ISBN 10

9350836181

प्रबंधन में पोस्टग्रेजुएशन के पश्चात् कुछ वर्ष नौकरी, साथ-साथ ओशो कार्य! कालान्तर में नौकरी छोड़ पूर्णरूपेण ओशो कार्य एवं लेखन में संलग्न! अनेक पुस्तकों के अनुवाद व प्रकाशन ! गीत, नाटक, प्रहसन, शायरी, कथाएं इत्यादि लिखे। साथ ही साथ अभिनय एवं संगीत से गहराई से जुड़े ! कई राष्ट्रीय स्तर की नाट्य-प्रस्तुतियों का संपादन एवं संचालन ! वर्तमान में ओशो सर्किल पफाउण्डेशन के माध्यम से कार्यरत, ध्यान शिविरों व वर्कशॉप्स का संचालन! यह रचना ‘रेत की रबाब’ सूपिफयों की बेबूझ दुनियाँ को ज़ाहिर करती दस्तावेज़ है। सदियों से बग़ावती इश्क़ का परचम उठाए ये दीवाने, आज भी रहस्य के परदे के पीछे से ही बोलते हैं। अरब के गर्म रेगिस्तानों में पैदा हुई इस रबाब के सुर कितने सुरीले हैं, इसी हकीकत को ज़ाहिर करती है – रेत की रबाब। सूप़फी प़फसानों पर लेखक की पकड़, ज़रुरी बातों की तप़फसील और मुलायम क़लम पाठक को सूपि़फयों के बहुत क़रीब ले आती है। सूपि़फयों में प्रचलित किताब के उन्वान खुदा के निन्यानवे नामों की याद दिलाते हैं। शायद ‘रेत की रबाब’ से सूपि़फयों के बारे में छाई धुंध कुछ और साप़फ हो सके।

ISBN10-9350836181

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