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Rigveda (ॠग्‍वेद)

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“पुस्तक के बारे में”

रिक’ का अर्थ है स्तुति । ऋग्वेद में इंद्र, अग्नि, रुद्र और दो अश्विनी देवताओं, वरुण, मरुत, सवित्रु और सूर्य जैसे देवताओं की स्तुति है। ऋग्वेद में प्रकृति की ऊर्जाओं के दोहन को अत्यधिक महत्व दिया गया है। इसमें देवताओं की स्तुति करने वाले हजारों भजन ( कविताएं) हैं। ये भजन विभिन्न मंत्रो से बने हैं। इन मन्त्रो की स्तुति करने से मनुष्य का कल्याण होता है।

ऋग्वेद में कितने मंडल हैं?

u0022ऋग्वेदu0022 में कुल 10 मंडल (किताबें) हैं, जिनमें से प्रत्येक में विभिन्न ऋचाएँ और मंत्र हैं।

ऋग्वेद का ऐतिहासिक महत्व क्या है?

u0022ऋग्वेदu0022 भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह वेदों का आधार है और प्राचीन भारतीय सभ्यता की गहरी समझ प्रदान करता है।

ऋग्वेद का रचना काल कब का माना जाता है?

ऋग्वेद का रचना काल लगभग 1500–1200 ईसा पूर्व का माना जाता है, जो वैदिक सभ्यता के समय का है। यह वेद संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसे सबसे पुरानी धार्मिक ग्रंथों में गिना जाता है।

ऋग्वेद में कुल कितने मंत्र और सूक्त हैं?

ऋग्वेद में कुल 10 मंडल हैं, जिनमें लगभग 1,028 सूक्त (भजन) और 10,600 से अधिक मंत्र हैं। ये मंत्र विभिन्न देवताओं की स्तुति और प्रार्थना के लिए हैं।

ऋग्वेद का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व क्या है?

ऋग्वेद धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें कर्मकांड, धर्म, और ब्रह्मांड की उत्पत्ति से जुड़े मंत्र और उपदेश हैं। यह वेद भारतीय आध्यात्मिकता का प्राचीन स्त्रोत माना जाता है।

Additional information

Weight 170 g
Dimensions 21.6 × 14 × 0.8 cm
Author

Raj Bahadur Pandey

ISBN

8171826709

Pages

68

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

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ISBN 10

8171826709

ॠग्‍वेद, वेदों का पहला ग्रंथ, भारतीय सभ्यता और संस्कृति का अद्वितीय स्त्रोत है। यह ग्रंथ प्राचीन संस्कृत में लिखा गया है और इसमें 1,028 सूक्त (प्रार्थनाएँ) हैं, जो विभिन्न देवताओं की स्तुति करती हैं। इसके श्लोक न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में, बल्कि जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। ॠग्‍वेद का अध्ययन न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के मूलभूत सिद्धांतों को भी उजागर करता है।

ISBN: 8171826709

ISBN10-8171826709

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