श्रीराम हमारे लिए एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिन्हें हम भारतवासियों ने बहुत समय से भगवान के रूप में माना और समझा है। उनके दिव्याचरण, धर्मानुकूल मर्यादित व्यवहार और चरित्र के दिव्य गुणों के कारण हमने उन्हें इस प्रकार का सम्मान प्रदान किया है। इस पुस्तक में हमने जो सोचा है- उसे कर डालो, शासक का कठोर होना जरूरी,वनवास में भी पुरुषार्थ करते रहो, दिए गये वचन को पूरा करो, जीवन शक्ति का करो सदुपयोग, राक्षसों के संहारक बनों, तुम्हें देखते ही देशद्रोही भाग खड़े हों, राक्षस को जीने का अधिकार नहीं, सदुपदेश पर करो अमल, अपनाओ श्रीराम के चरित्र को,राम भगवान क्यों बने?, संपूर्ण भारत को बना दो श्री राम का मंदिर, अपना लो श्रीराम की उदारता, सिंहावलोकन : हमने क्या सीखा? नामक कुल 14 अध्यायों में 14 वर्ष वनवासी जीवन जीने वाले भगवान श्रीराम के जीवन के आदर्शों को आज के भागमभाग और दौड़-धूप के जीवन में अपनाकर अपना जीवन कल्याण करने हेतु, पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया है। यदि इन अध्यायों के मर्म पर विचार किया जाए तो श्रीराम आज भी हमारे व्यक्तित्व विकास में सहायक हो सकते हैं।मेरा विचार है कि पाठक वृन्द और विशेष रूप से आज का युवा वर्ग यदि इस पुस्तक का इसी दृष्टिकोण से अध्ययन करेगा कि श्रीराम के जीवन से हम क्या शिक्षा ले सकते हैं या कैसे श्रीराम हमारे व्यक्तित्व विकास में सहायक हो सकते हैं? तो निश्चय ही हमारे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के कण-कण में रमे श्रीराम हमारा कदम-कदम पर मार्गदर्शन करते हुए दिखाई देंगे। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि यदि हमने श्रीराम के चरित्र को हृदयंगम कर लिया तो निश्चित ही यह पुस्तक आज के युवा वर्ग के लिए बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगी।
About the Author
चार दर्जन पुस्तकों के लेखक डॉ. राकेश कुमार आर्य का जन्म 17 जुलाई, 1967 को ग्राम महावड़ जनपद गौतमबुद्ध नगर उत्तर प्रदेश में एक आर्य समाजी परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम महाशय राजेंद्र सिंह आर्य और माता का नाम श्रीमती सत्यवती आर्या है। विधि व्यवसायी होने के साथ-साथ श्री आर्य एक प्रखर वक्ता भी हैं।
श्री आर्य को उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह द्वारा विशेष रूप से 22 जुलाई, 2015 को राजभवन राजस्थान में सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से 12 मार्च, 2019 को केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा उनकी शोध कृति “भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास” को वर्ष 2017 के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
इतिहास संबंधी शोधपूर्ण कार्य पर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय आर्य विद्यापीठ के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर श्यामसिंह शशि और संस्कृत में प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रोफेसर डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री विद्वानों के द्वारा डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि विगत 17 जुलाई, 2019 को उनके 53वें जन्म दिवस के अवसर पर दिल्ली में होटल अमलतास इंटरनेशनल में प्रदान की गई।
श्री आर्य को उनके उत्कृष्ट लेखन कार्य के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों व सामाजिक संस्थाओं से भी सम्मानित किया गया है। मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालयों में उनके लेक्चर विजिटर प्रोफेसर के रूप में आयोजित किए गए हैं।