Sri Hari Charitra Bhaktan Charitra – Divya Granth 4 : श्री हरि चरित्र भक्तन चरित्र – दिव्य ग्रंथ 4

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संत शिरोमणि अनन्त श्री परमहंस राम मंगल दास जी (12.2.1893 – 31.12.1984) विश्व के एक अद्वितीय ब्रह्मलीन संत थे जिनके समक्ष सब शक्तियों सहित भगवान, देवी-देवता, हर धर्म के पैगम्बर व सिद्ध-सन्त नित्य ध्यान में तथा प्रत्यक्ष प्रकट होकर बातें करते तथा आध्यात्मिक पद लिखवाते थे। उन्होंने अपने गुरुदेव की अत्यन्त कठिन सेवा की तथा गुरुदेव की पांच आज्ञाओं (महावाक्यों) का आजीवन पालन किया :

  1. अयोध्या जी में रहना, चाहे तहाँ पर|
  2. कोई जमीन दे तो न लेना।
  3. मरे पर पास में कफन को पैसा न निकले।
  4. कोई मारे तो हाथ न चलाना।
  5. किसी से बैर न करना।

वे करुणा के सागर थे तथा सदा नंगे पैर चलते थे कि कहीं कोई जीव मर न जाये। उनका जीवन अत्यन्त ही सरल व सादा था। सिर्फ एक अचला धोती पहने, बारहों मास एक सादी लकड़ी के तखत पर सुबह से रात तक बैठते तथा भक्तों को कल्याण मार्ग बताते। श्री परमहंस राम मंगल दास जी सभी धर्मों को मानते थे। उनके भक्त हर धर्म व जाति के थे। कोई भेद भाव नहीं था। हिन्दुओं को देवी-देवताओं के मंत्र, मुसलमानों को कलमा व नमाज पढ़ना, सिख्खों को उनकी गुरु-परम्परा के अनुसार उपदेश, व ईसाइयों को उनके धर्म के अनुरूप मार्ग बताते थे।

वे कहते थे कि भगवान भाव व प्रेम के भूखे हैं, आडम्बर के नहीं। उनका मुख्य उपदेश था : “सादा भोजन, सादा कपड़ा, अपनी सच्ची कमाई का अन्न, तथा अपने को सबसे नीचा मान लेना। कोई बेखता बेकसूर गाली दे, धक्का दे उसके हाथ जोड़ देना। सेवा धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है। बिना बुलाये जाकर सेवा कर आओ जितनी शक्ति हो, बस भजन हो गया। बुला कर जाने से सब कट जाता है। वे कहते थे “मान अपमान फूंक दो तब भगवान की गोद में जाकर बैठ जाओगे। जो भगवान को सब कुछ सौंप देता है, भगवान उससे बड़े खुश रहते हैं। जिसको भगवान का सच्चा भरोसा है उसे तकलीफ कैसे हो सकती है। जिसको भगवान से प्रेम है उसे चिंता नहीं हो सकत है, यह पहचान है।”

श्री परमहंस राम मंगल दास जी द्वारा लिखित पुस्तकें –

श्री परमहंस राम मंगल दास जी ने 1933 से सब शक्तियों सहित भगवान, देवी-देवता, ऋषि, मुनि, हर धर्म के पैगम्बर, सिद्ध, सन्त, पौराणिक तथा ऐतिहासिक महापुरुषों व महान नारियों के द्वारा उनके समक्ष ध्यान में तथा प्रत्यक्ष प्रकट होकर लिखवाये आध्यात्मिक पदों को मुख्यत: चार दिव्य ग्रन्थों में संग्रहीत किया।

श्री परमहंस राम मंगल दास जी ने 82 वर्ष की अवस्था में (1975 में) देवी भगवती की आज्ञा से विश्व की एक परम अद्भुत पुस्तक लिखी “भक्त भगवन्त चरितावली एवं चरितामृत”। श्री गुरु नानक देव जी, श्री ईसा मसीह जी तथा श्री मोहम्मद साहब जी ने परमहंस जी के सामने प्रगट होकर जो बातें करीं तथा आध्यात्मिक उपदेश दिये, वो इस पुस्तक में लिखे हैं। परमहंस जी ने इसमें आज के समय के संतों व अनेक हिन्दू मुसलमान स्त्री-पुरुष भक्तों की कथायें लिखी हैं जिनको शक्तियों सहित भगवान, देवी-देवता व पैगम्बर दर्शन देते, कृपा करते, रक्षा करते, बातें करते, साथ में खाते पीते व मार्ग दर्शन करते थे।

श्री परमहंस राम मंगल दास जी अनेक वर्षों से सोये नहीं – वे सदा अनहद नाद को सुनते रहते थे। इसी कारण वे अपने कानों से बाहर की आवाज नहीं सुन पाते थे। अतः भक्तजन स्लेट अथवा कागज पर लिखकर प्रश्न पूछते। तत्पश्चात परमहंस जी अपने श्रीमुख से उनकी शंका समाधान करते व उपदेश देते। पूज्य श्री परमहंस जी के कर- कमलों द्वारा स्लेटों पर लिखे कुछ उपदेशों व प्रश्नोत्तर का संकलन “वैकुण्ठ धाम के अमृत फल” प्रकाशित किया गया है। सब पुस्तकें निम्नलिखित हैं –

  1. श्री राम-कृष्ण लीला भक्तामृत चरितावली: दिव्य ग्रन्थ -1 (संपूर्ण)
  2. श्री भक्त भगवन्त चरितामृत सुख विलासः दिव्य ग्रन्थ -2
  3. श्री संत भगवन्त कीरति: दिव्य ग्रन्थ -3
  4. श्री हरि चरित्र भक्तन चरित्रः दिव्य ग्रन्थ -4
  5. भक्त भगवन्त चरितावली एवं चरितामृत (संपूर्ण)
  6. वैकुंठ धाम के अमृत फल

Additional information

संत शिरोमणि अनन्त श्री परमहंस राम मंगल दास जी (12.2.1893 – 31.12.1984) ने सन् 1933 ई. से सब शक्तियों सहित भगवान, देवी-देवता, ऋषि, मुनि, हर धर्म के पैगम्बर, सिद्ध, सन्त, पौराणिक तथा ऐतिहासिक महापुरुषों व महान नारियों के द्वारा उनके समक्ष ध्यान में तथा प्रत्यक्ष प्रकट होकर लिखवाये आध्यात्मिक पदों को मुख्यतः चार दिव्य ग्रन्थों में संग्रहीत किया। ये दिव्य ग्रन्थ उनके गोकुल भवन आश्रम में परमपूज्य रूप से सुरक्षित रखे हुये हैं। प्रथम ग्रन्थ जिसका नामकरण दिव्य रूप से श्री गुरु वशिष्ठ जी ने किया “श्री राम-कृष्ण लीला भक्तामृत चरितावली”, उसके प्रथम भाग का प्रकाशन श्री वशिष्ठ जी की आज्ञा व कृपा से सन् 1999 में हुआ। श्री गुरुकृपा से इसी प्रथम दिव्य ग्रन्थ का दूसरा भाग सन् 2001 में, दिव्य ग्रन्थ-2 “श्री भक्त भगवन्त चरितामृत सुखविलास’ तथा दिव्य ग्रन्थ -3 “श्री संत भगवन्त कीरति” सन् 2002 ई. में प्रकाशित किये गये। इसी श्रंखला का दिव्य ग्रन्थ-4 “श्री हरि चरित्र भक्तन चरित्र” श्री गुरुकृपा से सर्व जगत कल्याण के लिये सन् 2003 ई. में प्रकाशित किया गया।

श्री वशिष्ठ जी ने सन् 1933 में प्रकट होकर पूज्य श्री परमहंस राम मंगल दास जी को लिखवाया था कि इन सारे दिव्य ग्रन्थों की रचना जगत – जननी श्री सीता जी व श्री राधा जी की कृपा से हो रही है । उसके बाद ही श्री राधा जी ने प्रकट होकर लिखवाया कि जब संत श्री कृष्णदास पयहारी जी हरि चरित्र लिखवायेंगे तब इन दिव्य ग्रन्थों का समापन होगा। यही दिव्य ग्रन्थ-4 वो ग्रन्थ है जिसके अन्त में संत श्री पयहारी जी ने सन् 1958 में प्रकट होकर दिव्य रामायण लिखवाई है। यह दिव्य रामायण अलौकिक है। इसमें रामायण संबंधी अभूतपूर्व आध्यात्मिक तथ्यों का वर्णन है जो और कहीं उपलब्ध नहीं हैं। ये दिव्य प्रसंग व तथ्य भक्ति तथा प्रेम से सराबोर हैं और असीम आनन्द प्रदान करने वाले हैं।

इस दिव्य ग्रन्थ-4 में श्री परमहंस राम मंगल दास जी को दर्शन देकर जिन्होंने दिव्य आध्यात्मिक पद लिखवाये हैं, सक्षिप्त रूप में वे इस प्रकार हैं:-

  • श्री अंधे शाह जी (श्री कबीर दास जी के समकालीन) जिनके गुरु स्वयं भगवान शंकर जी व हनुमान जी थे।
  • श्री कबीर दास जी, श्री तुलसी दास जी।
  • श्री मलिक मुहम्मद जायसी, श्री चाली दास जी।
  • श्री कृष्णदास पयहारी जी।

इन समस्त दिव्य ग्रन्थों की मुख्य बात यह है कि इनमें किसी विशेष गुरु या किसी विशेष साधना पद्धति का अनुसरण करने के लिये नहीं कहा गया है। इन दिव्य ग्रन्थों में सब धर्मों का सार, उनकी एकता, विश्व-बंधुत्व, सबमें प्रेम व्यवहार, सद्भाव, दीनता व सेवा भाव का उपदेश दिया गया है। ये दिव्य ग्रन्थ हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि सभी धर्मों के पालन करने वालों के लिये हैं। अपनी-अपनी परम्पराओं पर चलते हुये कैसे भगवान की प्राप्ति हो सकती है इसका वर्णन दिव्य सिद्ध संतों ने किया है। आदि गुरु परमपूज्य श्री स्वामी रामानन्द जी ( 1267 ई.-1458 ई.) ने प्रकट होकर प्रथम दिव्य ग्रन्थ में यह लिखाया है : “हरि हरिभक्तन का चरित, है अति सुख की खानि। रामानन्द यह कहत हैं, लेव वचन मम मानि।। पढ़ै सुनै जो ग्रन्थ यह, तन मन प्रेम लगाय। हर्ष शोक की शान्ति हो, भवसागर तरि जाय।।”

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