Sur Shyaam : Surdas Ke Jeevan Per Aadharit Upanyas (सूर श्याम : सूरदास के जीवन पर आधारित उपन्यास)

250.00

‘मुझे किसी की तपस्या में व्यवधान बनने का क्या अधिकार था ? मेरा मन आपको देखते ही आकृष्ट हो गया था। आपको पाना मेरा लक्ष्य बन गया था। मैं उसके लिए जो कर सकती थी, वह मैंने किया। आपके मन के चलायमान होने का मैं कारण हूँ। मैं तब भूल गई थी कि मैं क्या करने जा रही हूँ। रात को आई थी तो प्रणय निवेदनार्थ। मेरी नियति बंधनमयी है। मेरे संस्कार बंधनमय हैं। मैं विघ्न स्वरूपा हूँ। माया मेरी वृत्ति है। योगीराज, मैं अपनी इयत्ताओं को भूलकर अनधिकार चेष्टा कर उठी थी, उसका फल मुझे ही मिलना चाहिए।’

About the Author

सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म 2 मई 1938, अंबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कालिज, आगरा और बीकानेर में।
शिक्षा :- एम. ए. पी-एच. डी. डी लिट् आचार्य ।
साहित्य :- चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चितहुए- दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुधा, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति।
नाटक :- संध्या को चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गूंगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति
कथा :- गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि ।
अनेक उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित । अनेक कृतिया पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।

Additional information

Author

Dr. Rajendra Mohan Bhatnagar

ISBN

9789359205434

Pages

132

Format

Hardcover

Language

Hindi

Publisher

Junior Diamond

Amazon

https://www.amazon.in/dp/9359205435

Flipkart

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ISBN 10

9359205435

‘मुझे किसी की तपस्या में व्यवधान बनने का क्या अधिकार था ? मेरा मन आपको देखते ही आकृष्ट हो गया था। आपको पाना मेरा लक्ष्य बन गया था। मैं उसके लिए जो कर सकती थी, वह मैंने किया। आपके मन के चलायमान होने का मैं कारण हूँ। मैं तब भूल गई थी कि मैं क्या करने जा रही हूँ। रात को आई थी तो प्रणय निवेदनार्थ। मेरी नियति बंधनमयी है। मेरे संस्कार बंधनमय हैं। मैं विघ्न स्वरूपा हूँ। माया मेरी वृत्ति है। योगीराज, मैं अपनी इयत्ताओं को भूलकर अनधिकार चेष्टा कर उठी थी, उसका फल मुझे ही मिलना चाहिए।’

About the Author

सुविख्यात कथाकार डॉ. राजेन्द्र मोहन भटनागर का जन्म 2 मई 1938, अंबाला (हरियाणा) में हुआ और शिक्षा सेंट जोंस कालिज, आगरा और बीकानेर में।
शिक्षा :- एम. ए. पी-एच. डी. डी लिट् आचार्य ।
साहित्य :- चालीस से ऊपर उपन्यास। उनमें रेखांकित और चर्चितहुए- दिल्ली चलो, सूरश्याम, महाबानो, नीले घोड़े का सवार, राज राजेश्वर, प्रेम दीवानी, सिद्ध पुरुष, रिवोल्ट, परिधि, न गोपी न राधा, जोगिन, दहशत, श्यामप्रिया, गन्ना बेगम, सर्वोदय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, वाग्देवी, युगपुरुष अंबेडकर, महात्मा, अन्तहीन युद्ध, अंतिम सत्याग्राही, शुभप्रभात, वसुधा, विकल्प, मोनालिसा प्रभृति महाबानो प्रभृति।
नाटक :- संध्या को चोर, सूर्याणी, ताम्रपत्र, रक्त ध्वज, माटी कहे कुम्हार से, दुरभिसंधि, महाप्रयाण, नायिका, गूंगा गवाह, मीरा, सारथिपुत्र, भोरमदेव प्रभृति
कथा :- गौरैया, चाणक्य की हार, लताए, मांग का सिंदूर आदि ।
अनेक उपन्यास धारावाहिक प्रकाशित और आकाशवाणी से प्रसारित । अनेक कृतिया पर शोध कार्य। अनेक उपन्यास और कहानियां कन्नड़, अंग्रेजी, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं में अनूदित। राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार के साथ शिखर सम्मान विशिष्ट साहित्यकार के रूप में, नाहर सम्मान पुरस्कार, घनश्यामदास सर्राफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार आदि अनेक राष्ट्रीय पुरस्कार।

ISBN10-9359205435