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वैशाली की नगरवधू” आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जो प्राचीन वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू अम्रपाली के जीवन और उनके प्रभाव पर आधारित है। यह उपन्यास उस समय के समाज और राजनीति की भी गहरी झलक देता है।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक (अनूपशहर के पास) में हुआ था। उनके पिता पंडित केवाल राम ठाकुर थे और माता नन्हीं देवी थीं। उनका जन्म का नाम चतुर्भुज था। अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने वर्ष 1915 में आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।
यह उपन्यास प्राचीन वैशाली की प्रसिद्ध नगरवधू अम्रपाली के जीवन पर आधारित है।
इसे प्रसिद्ध भारतीय लेखक आचार्य चतुरसेन ने लिखा है।
अम्रपाली अपनी सुंदरता, बुद्धिमत्ता और प्राचीन वैशाली की राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जानी जाती हैं।
यह भारतीय इतिहास और अम्रपाली जैसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक शख्सियत के जीवन की एक रोचक झलक प्रस्तुत करती है।
यह उपन्यास प्राचीन वैशाली के समाज और राजनीति की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है, विशेषकर महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालता है
Weight | 600 g |
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Dimensions | 21.4 × 14 × 2.4 cm |
Author | Acharya Chatursen |
ISBN | 9789356847651 |
Pages | 186 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
Amazon | |
Flipkart | https://www.flipkart.com/vaishali-ki-nagarvadhu/p/itm265ebec3ae2a5?pid=9789356847651 |
ISBN 10 | 9356847657 |
हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना ‘वैशाली की नगरवधू’ वह उपन्यास है जिसने निश्चय ही हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में यह गिनती में आनी चाहिए। अपने इस उपन्यास के बारे में स्वयं आचार्य जी ने कहा था, “यह अब तक सबसे बड़ी रचनाओं को टक्कर दे सकता है और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना स्वीकार करता हूं।” इस उपन्यास सामंती जीवन का जीवंत-जाग्रत खाता है। उपन्यास की कहानी एक परिवेशी परंपरागत और सांस्कृतिक है जो ठोक काल से जुड़े हैं। इसमें सामाजिक और धार्मिक विषयों पर लिखने का इतिहास युग के संघर्ष और सामाजिक-धार्मिक संरचनाओं को अपने समय के अनुरूप शैली में ढाला गया है। इससे वैचारिक स्तर पर बेहतरीन उपन्यास के रूप में वैशाली की नगरवधू ने हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त किया है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी की साहित्य की समृद्ध शैली ने हिन्दी साहित्य के उपन्यास लेखन में नया अध्याय शुरू किया। इस उपन्यास की कहानी वर्तमान में इतनी समसामयिक और प्रेरणादायक है कि इसके कालखण्ड में समाज का प्रतिबिंब देखने को मिलता है।
ISBN10-9356847657
Diamond Books, Business and Management, Economics
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