Vaishali Ki Nagarvadhu (वैशाली की नगरवधू)

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हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना ‘वैशाली की नगरवधू’ वह उपन्यास है जिसकी गिनती हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जाती है। अपने इस उपन्यास के बारे में स्वयं आचार्य जी ने कहा था, “मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूँ और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूँ।”
यह उपन्यास भारतीय जीवन का जीता-जागता खाका है। उपन्यास की कहानी का परिवेश ऐतिहासिक और सांस्कृतिक है जो बौद्ध काल से जुड़ी हुई है। इसमें तत्कालीन लिच्छिवि संघ की राजधानी वैशाली की पुरावधू ‘आम्रपाली’ को प्रधान चरित्र के जरिए उस युग के हास-विलासपूर्ण सांस्कृतिक वातावरण को उकेरने की कोशिश की गयी है। वस्तुतः यह उपन्यास मगध और वैशाली के रूप में साम्राज्य और गणतंत्र के टकराव को रूप देता है। इसमें शास्त्री जी वैशाली के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि राजतन्त्र और तानाशाह की जीत, दुश्मन को पूरी तरह बरबाद कर देती है जबकि जनप्रतिनिधियों और लोकतन्त्र की जीत उतनी हिंसक नहीं होती।

About the Author

आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक (अनूपशहर के पास) में हुआ था। उनके पिता पंडित केवाल राम ठाकुर थे और माता नन्हीं देवी थीं। उनका जन्म का नाम चतुर्भुज था। अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने वर्ष 1915 में आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।
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हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना ‘वैशाली की नगरवधू’ वह उपन्यास है जिसकी गिनती हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जाती है। अपने इस उपन्यास के बारे में स्वयं आचार्य जी ने कहा था, “मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूँ और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूँ।”
यह उपन्यास भारतीय जीवन का जीता-जागता खाका है। उपन्यास की कहानी का परिवेश ऐतिहासिक और सांस्कृतिक है जो बौद्ध काल से जुड़ी हुई है। इसमें तत्कालीन लिच्छिवि संघ की राजधानी वैशाली की पुरावधू ‘आम्रपाली’ को प्रधान चरित्र के जरिए उस युग के हास-विलासपूर्ण सांस्कृतिक वातावरण को उकेरने की कोशिश की गयी है। वस्तुतः यह उपन्यास मगध और वैशाली के रूप में साम्राज्य और गणतंत्र के टकराव को रूप देता है। इसमें शास्त्री जी वैशाली के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि राजतन्त्र और तानाशाह की जीत, दुश्मन को पूरी तरह बरबाद कर देती है जबकि जनप्रतिनिधियों और लोकतन्त्र की जीत उतनी हिंसक नहीं होती।

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आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त, 1891 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक (अनूपशहर के पास) में हुआ था। उनके पिता पंडित केवाल राम ठाकुर थे और माता नन्हीं देवी थीं। उनका जन्म का नाम चतुर्भुज था। अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने वर्ष 1915 में आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।
Author

Acharya Chatursen

ISBN

9789356847651

Pages

186

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

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https://www.amazon.in/dp/9356847657

Flipkart

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ISBN 10

9356847657

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