Vayam Rakshamah – (वयं रक्षाम:)

400.00

In stock

Free shipping On all orders above Rs 600/-

  • We are available 10/5
  • Need help? contact us, Call us on: +91-9716244500
Guaranteed Safe Checkout

सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास ‘वयं रक्षामः’ का मुख्य पात्र रावण है, न कि राम। इसमें रावण के चरित्र के अन्य पक्ष को रेखांकित करते हुए उसको राम से श्रेष्ठ बताया गया है। हिंदुस्तान की आर्य संस्कृति पर इस पुस्तक में कुछ इस तरह आचार्य चतुरसेन प्रकाश डालते हैं- ‘उन दिनों तक भारत के उत्तराखण्ड में ही आर्यों के सूर्य-मण्डल और चन्द्र मण्डल नामक दो राजसमूह थे। दोनों मण्डलों को मिलाकर आर्यावर्त कहा जाता था। उन दिनों आर्यों में यह नियम प्रचलित था कि सामाजिक श्रंखला भंग करने वालों को समाज-बहिष्कृत कर दिया जाता था। दण्डनीय जनों को जाति-बहिष्कार के अतिरिक्त प्रायश्चित जेल और जुर्माने के दण्ड दिये जाते थे। प्रायः ये ही बहिष्कृत जन दक्षिणारण्य में निष्कासित, कर दिये जाते थे। धीरे-धीरे इन बहिष्कृत जनों की दक्षिण और वहां के द्वीपपुंजों में दस्यु, महिष, कपि, नाग, पौण्ड, द्रविण, काम्बोज, पारद, खस, पल्लव, चीन, किरात, मल्ल, दरद, शक आदि जातियां संगठित हो गयी थीं।’ पुस्तक के अनुसार, रावण ने दक्षिण को उत्तर से जोड़ने के लिए नयी संस्कृति का प्रचार किया। उसने उसे रक्ष-संस्कृति का नाम दिया।

About the Author

आचार्य चतुरसेन जी साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने किशोरावस्था में कहानी और गीतिकाव्य लिखना शुरू किया, बाद में उनका साहित्य-क्षितिज फैला और वे जीवनी, संस्मरण, इतिहास, उपन्यास, नाटक तथा धार्मिक विषयों पर लिखने लगे।
शास्त्रीजी साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक कुशल चिकित्सक भी थे। वैद्य होने पर भी उनकी साहित्य-सर्जन में गहरी रुचि थी। उन्होंने राजनीति, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास और युगबोध जैसे विभिन्न विषयों पर लिखा। ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘वयं रक्षाम’ और ‘सोमनाथ’, ‘गोली’, ‘सोना और खून’ (तीन खंड), ‘रत्तफ़ की प्यास’, ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’, ‘नरमेघ’, ‘अपराजिता’, ‘धर्मपुत्र’ सबसे ज्यादा चर्चित कृतियाँ हैं।

Vayam Rakshamah - (वयं रक्षाम:)-0
Vayam Rakshamah – (वयं रक्षाम:)
400.00

सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास ‘वयं रक्षामः’ का मुख्य पात्र रावण है, न कि राम। इसमें रावण के चरित्र के अन्य पक्ष को रेखांकित करते हुए उसको राम से श्रेष्ठ बताया गया है। हिंदुस्तान की आर्य संस्कृति पर इस पुस्तक में कुछ इस तरह आचार्य चतुरसेन प्रकाश डालते हैं- ‘उन दिनों तक भारत के उत्तराखण्ड में ही आर्यों के सूर्य-मण्डल और चन्द्र मण्डल नामक दो राजसमूह थे। दोनों मण्डलों को मिलाकर आर्यावर्त कहा जाता था। उन दिनों आर्यों में यह नियम प्रचलित था कि सामाजिक श्रंखला भंग करने वालों को समाज-बहिष्कृत कर दिया जाता था। दण्डनीय जनों को जाति-बहिष्कार के अतिरिक्त प्रायश्चित जेल और जुर्माने के दण्ड दिये जाते थे। प्रायः ये ही बहिष्कृत जन दक्षिणारण्य में निष्कासित, कर दिये जाते थे। धीरे-धीरे इन बहिष्कृत जनों की दक्षिण और वहां के द्वीपपुंजों में दस्यु, महिष, कपि, नाग, पौण्ड, द्रविण, काम्बोज, पारद, खस, पल्लव, चीन, किरात, मल्ल, दरद, शक आदि जातियां संगठित हो गयी थीं।’ पुस्तक के अनुसार, रावण ने दक्षिण को उत्तर से जोड़ने के लिए नयी संस्कृति का प्रचार किया। उसने उसे रक्ष-संस्कृति का नाम दिया।

About the Author

आचार्य चतुरसेन जी साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा तक सीमित नहीं हैं। उन्होंने किशोरावस्था में कहानी और गीतिकाव्य लिखना शुरू किया, बाद में उनका साहित्य-क्षितिज फैला और वे जीवनी, संस्मरण, इतिहास, उपन्यास, नाटक तथा धार्मिक विषयों पर लिखने लगे।
शास्त्रीजी साहित्यकार ही नहीं बल्कि एक कुशल चिकित्सक भी थे। वैद्य होने पर भी उनकी साहित्य-सर्जन में गहरी रुचि थी। उन्होंने राजनीति, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास और युगबोध जैसे विभिन्न विषयों पर लिखा। ‘वैशाली की नगरवधू’, ‘वयं रक्षाम’ और ‘सोमनाथ’, ‘गोली’, ‘सोना और खून’ (तीन खंड), ‘रत्तफ़ की प्यास’, ‘हृदय की प्यास’, ‘अमर अभिलाषा’, ‘नरमेघ’, ‘अपराजिता’, ‘धर्मपुत्र’ सबसे ज्यादा चर्चित कृतियाँ हैं।

Additional information

Author

Acharya Chatursen

ISBN

9789390287130

Pages

32

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/dp/9390287138

Flipkart

https://www.flipkart.com/vayam-rakshamah/p/itm68edfa16f4ea7?pid=9789390287130

ISBN 10

9390287138