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Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)-0
Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)-5627
Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)-5628

Vedant Darshan Aur Moksh Chintan (वेदांत दर्शन और मोक्ष चिंतन)

Original price was: ₹350.00.Current price is: ₹349.00.

सभ्यता व संस्कृति के ऊषा काल से ही मानवीय चिन्तन प्रक्रिया अबाध गति से चलायमान रही है तथा देश, काल व परिस्थिति में इसके अलग-अलग सोपान रहे हैं। भारतीय सन्दर्भ में यदि चिन्तन विधाओं पर एक विहंगम दृष्टिपात करें तो यह तथ्य ज्ञात होता है कि, दार्शनिक चिन्तन का प्रारम्भ यद्यपि दुःखों की जिज्ञासा से होता है तथापि इसका पर्यवसान समग्र जीवन के श्रेष्ठतम श्रेयस् लक्ष्य ‘मोक्ष’ की उपलब्धि में होता है। भारतीय दर्शन में आधिभौतिक, आध्यात्मिक तथा आदिदैविक इन त्रिविध दु:खों से आत्यन्तिक तथा एकान्तिक निवृत्ति को परम पुरुषार्थ की संज्ञा से सम्बोधित किया गया है। अर्थ, काम, धर्म तथा मोक्ष रूपी चार पुरुषार्थों में मोक्ष को परम पुरुषार्थ की संज्ञा प्रदान की गई है। इन पुरुषार्थ चतुष्टय में साधन-साध्य सम्बन्ध माना जाता है। अर्थ, काम तथा धर्म रुपी त्रिवर्ग को मोक्ष रुपी चतुवर्ग (साध्य) का साधन माना जाता है।

ज्ञातव्य है कि समग्र भारतीय चिन्तन विधा का चरमोत्कर्ष वेदान्त चिन्तन माना जाता हैं। ‘वेद’ शब्द ‘विद्’ धातु से व्युत्पन्न है जिसका आशय ‘जानने’ से अथवा ‘ज्ञान प्राप्त करने’ से है; अर्थात् जिसको जानने के पश्चात् अन्य किसी प्रकार के ज्ञान को जानने की आवश्यकता नहीं रहती वही वेद है। वेद ही ज्ञान के अक्षय व अक्षुण्ण भण्डार हैं। वैदिक साहित्य के अंतिम भाग को वेदान्त शब्द से निरूपित किया जाता है। संस्कृत में ‘अन्त’ शब्द के तीन अर्थ होते हैं – ‘अन्तिम भाग’, सिद्धान्त’ और ‘सार तत्त्व’। इस प्रकार वेदान्त का अर्थ वेदों के सार तत्त्वों से है। उपनिषदों में वेदान्त के उपर्युक्त तीनों अर्थों का समावेश हो जाता है इसलिए उपनिषदों के लिए वेदान्त शब्द व्यवहार किया जाता है।

प्रस्तुत पुस्तक सभी भारतीय विचारों और दर्शनों के मोक्ष-चिन्तन या आत्म साक्षात्कार के स्वरूपों का निरूपण करते हुए प्रमुख वेदान्त सम्प्रदायों के अनुसार मोक्ष-चिन्तन की व्याख्या करती है। वेदान्त की सभी प्रमुख वैचारिक शाखाओं के गूढ तथ्यों का सरल एवं अनुपम वर्णन पुस्तक में उपलब्ध है। पुस्तक के अंत में सभी विचारकों के मध्य परस्पर अन्तरसंगतता को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए सभी के विचारों को चिंतन के विभिन्न स्तरों के रूप में स्थापित करते हुए एक मात्र पूर्ण सत्य – ‘ब्रह्म सत्यं-जगत मिथ्या’ के निरुपण करने का प्रयास किया है। साथ ही मोक्ष चिंतन की वर्तमान में व्यवहारिकता और महत्त्व, जीवन का उच्चतम लक्ष्य और नैतिकता के साथ समन्वय की विवेचना की गई है। पुस्तक की भाषा सरल और ग्राह्य है। पुस्तक लेखन की शैली दार्शनिक अभिव्यक्तियों को अधिक स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाती है।.

Additional information

Author

Dr. Ravindra Bohra

ISBN

9788194633716

Pages

48

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

Amazon

https://www.amazon.in/Vedant-Darshan-Moksh-Chintan-/dp/8194633710/ref=sr_1_1?dchild=1&keywords=9788194633716&qid=1629191828&sr=8-1

ISBN 10

8194633710

सभ्यता व संस्कृति के ऊषा काल से ही मानवीय चिन्तन प्रक्रिया अबाध गति से चलायमान रही है तथा देश, काल व परिस्थिति में इसके अलग-अलग सोपान रहे हैं। भारतीय सन्दर्भ में यदि चिन्तन विधाओं पर एक विहंगम दृष्टिपात करें तो यह तथ्य ज्ञात होता है कि, दार्शनिक चिन्तन का प्रारम्भ यद्यपि दुःखों की जिज्ञासा से होता है तथापि इसका पर्यवसान समग्र जीवन के श्रेष्ठतम श्रेयस् लक्ष्य ‘मोक्ष’ की उपलब्धि में होता है। भारतीय दर्शन में आधिभौतिक, आध्यात्मिक तथा आदिदैविक इन त्रिविध दु:खों से आत्यन्तिक तथा एकान्तिक निवृत्ति को परम पुरुषार्थ की संज्ञा से सम्बोधित किया गया है। अर्थ, काम, धर्म तथा मोक्ष रूपी चार पुरुषार्थों में मोक्ष को परम पुरुषार्थ की संज्ञा प्रदान की गई है। इन पुरुषार्थ चतुष्टय में साधन-साध्य सम्बन्ध माना जाता है। अर्थ, काम तथा धर्म रुपी त्रिवर्ग को मोक्ष रुपी चतुवर्ग (साध्य) का साधन माना जाता है।

ज्ञातव्य है कि समग्र भारतीय चिन्तन विधा का चरमोत्कर्ष वेदान्त चिन्तन माना जाता हैं। ‘वेद’ शब्द ‘विद्’ धातु से व्युत्पन्न है जिसका आशय ‘जानने’ से अथवा ‘ज्ञान प्राप्त करने’ से है; अर्थात् जिसको जानने के पश्चात् अन्य किसी प्रकार के ज्ञान को जानने की आवश्यकता नहीं रहती वही वेद है। वेद ही ज्ञान के अक्षय व अक्षुण्ण भण्डार हैं। वैदिक साहित्य के अंतिम भाग को वेदान्त शब्द से निरूपित किया जाता है। संस्कृत में ‘अन्त’ शब्द के तीन अर्थ होते हैं – ‘अन्तिम भाग’, सिद्धान्त’ और ‘सार तत्त्व’। इस प्रकार वेदान्त का अर्थ वेदों के सार तत्त्वों से है। उपनिषदों में वेदान्त के उपर्युक्त तीनों अर्थों का समावेश हो जाता है इसलिए उपनिषदों के लिए वेदान्त शब्द व्यवहार किया जाता है।

प्रस्तुत पुस्तक सभी भारतीय विचारों और दर्शनों के मोक्ष-चिन्तन या आत्म साक्षात्कार के स्वरूपों का निरूपण करते हुए प्रमुख वेदान्त सम्प्रदायों के अनुसार मोक्ष-चिन्तन की व्याख्या करती है। वेदान्त की सभी प्रमुख वैचारिक शाखाओं के गूढ तथ्यों का सरल एवं अनुपम वर्णन पुस्तक में उपलब्ध है। पुस्तक के अंत में सभी विचारकों के मध्य परस्पर अन्तरसंगतता को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए सभी के विचारों को चिंतन के विभिन्न स्तरों के रूप में स्थापित करते हुए एक मात्र पूर्ण सत्य – ‘ब्रह्म सत्यं-जगत मिथ्या’ के निरुपण करने का प्रयास किया है। साथ ही मोक्ष चिंतन की वर्तमान में व्यवहारिकता और महत्त्व, जीवन का उच्चतम लक्ष्य और नैतिकता के साथ समन्वय की विवेचना की गई है। पुस्तक की भाषा सरल और ग्राह्य है। पुस्तक लेखन की शैली दार्शनिक अभिव्यक्तियों को अधिक स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाती है।.

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