पुस्तक के बारे में
परमहंस योगानंद की यह आत्मकथा, पाठकों और योग के जिज्ञासुओं को संतों, योगियों, विज्ञान और चमत्कार, मृत्यु एवं पुनर्जन्म, मोक्ष व बंधन, की एक ऐसी अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाती है, जिससे पाठक अभिभूत हो जाता है। सहज-सरल शब्दों में भावाभिव्यक्ति, पठनीय शैली, गठन कौशल, भाव- पटुता, रचना प्रवाह, शब्द सौन्दर्य इस आत्मकथा को एक नया आयाम देते हैं और पुस्तक को पठनीय बनाते हैं। एक सिद्ध पुरुष की जीवनगाथा को प्रस्तुत करती यह पुस्तक जीवन दर्शन के तमाम पक्षों से न सिर्फ हमें रूबरू कराती है, बल्कि योग के अद्भुत चमत्कारों से भी परिचित करवाती है।
लेखक के बारे में
परमहंस योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर, भारत में हुआ था। वह भारत के पहले योग गुरु थे जिन्होंने स्थायी रूप से पश्चिम में रहकर योग सिखाया। योगानंद 1920 में अमेरिका पहुंचे और अपने ‘आध्यात्मिक अभियानों’ के दौरान पूरे अमेरिका में यात्रा की। उनके जोशीले श्रोताओं ने अमेरिका के सबसे बड़े सभागारों को भर दिया। सैकड़ों हजारों लोग इस भारतीय योगी को देखने आए। कई स्थानों पर हज़ारों लोग हर रात ठुकराए गए, क्योंकि जगह कम पड़ गई थी। योगानंद का प्रभाव इतना अधिक था कि उनके व्याख्यानों और पुस्तकों के बारे में उस समय की प्रमुख मीडिया, जैसे टाइम मैगज़ीन, न्यूज़वीक और लाइफ़ में व्यापक रूप से लिखा गया। उन्हें राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज द्वारा व्हाइट हाउस में आमंत्रित भी किया गया। योगानंद ने 1952 में अपनी मृत्यु तक व्याख्यान देना और लिखना जारी रखा।
योगानंद का प्रारंभिक प्रभाव वास्तव में प्रभावशाली था, लेकिन उनका स्थायी प्रभाव उससे भी अधिक रहा। योगानंद की पुस्तक ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ अ योगी’, जो पहली बार 1946 में प्रकाशित हुई, ने पूरी दुनिया में आध्यात्मिक क्रांति की शुरुआत की। उनका संदेश संप्रदायवादी नहीं था, बल्कि सार्वभौमिक था। योगानंद के गुरु, स्वामी श्री युक्तेश्वर ने उन्हें पश्चिम भेजते समय यह निर्देश दिया था, “पश्चिम भौतिक उपलब्धियों में बहुत ऊँचा है, लेकिन आध्यात्मिक समझ की कमी है। यह ईश्वर की इच्छा है कि आप मनुष्य को भौतिक और आंतरिक, आध्यात्मिक जीवन के संतुलन का महत्व सिखाने में एक भूमिका निभाएं।”
कृयायोग साधना क्या है, और इसे योगानंद ने क्यों महत्वपूर्ण बताया?
कृयायोग साधना एक प्राचीन ध्यान पद्धति है, जिसे योगानंद ने आत्म-साक्षात्कार का एक शक्तिशाली साधन बताया है। इसे आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग कहा गया है और इसे ध्यान के माध्यम से मानव जीवन को दिव्य चेतना से जोड़ने का साधन माना गया है।
परमहंस योगानंद का उद्देश्य अमेरिका में योग और ध्यान का प्रचार करना क्यों था?
योगानंद जी का उद्देश्य था कि पश्चिमी देशों को भी भारतीय अध्यात्म और योग के लाभों से परिचित कराया जाए। उनका मानना था कि ध्यान और आत्म-साक्षात्कार से हर व्यक्ति शांति और संतुलन पा सकता है, जो जीवन में सफलता और संतोष का आधार है।
“योगी कथामृत” में ध्यान और योग का क्या महत्व बताया गया है?
इस पुस्तक में ध्यान और योग को आत्म-साक्षात्कार और परम चेतना से जुड़ने का मार्ग बताया गया है। योग और ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आत्मा और ईश्वर से जुड़ सकता है और जीवन के गहरे रहस्यों को समझ सकता है।
क्या “योगी कथामृत” किसी भी पाठक के लिए उपयुक्त है या केवल आध्यात्मिक साधकों के लिए है?
यह पुस्तक सभी के लिए उपयुक्त है। चाहे कोई आध्यात्मिक साधक हो या साधारण पाठक, हर व्यक्ति इसके ज्ञान और अनुभवों से लाभान्वित हो सकता है। इसमें जीवन, आत्मा, और अध्यात्म के प्रति एक गहरी समझ प्राप्त होती है, जो सभी के लिए प्रेरणादायक है।
स्तक में योगानंद के अनुसार, क्या एक गुरु का महत्व है?
योगानंद जी ने गुरु को आध्यात्मिक मार्ग पर एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बताया है। उनके अनुसार, गुरु व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर सहारा देता है और आध्यात्मिक ज्ञान को प्रकट करने में सहायक होता है।