विकास का पथ

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जो व्‍यक्ति अपने जीवनोद्देश्‍य को निश्चित कर लेता है और उसके लिए सदा उत्‍साहित बना रहता है, उसमें एक ऐसी शक्ति पैदा होती है, जिसे हम रचनात्‍म्‍क, सृजनात्‍मक, क्रियात्‍मक अथवा निर्माणात्‍मक सृजन शक्ति कह सकते हैं। ऐसा कर्मठ व्‍यक्ति ही सृष्‍टा बन जाता है। लक्ष्‍य के बिना कोई भी व्‍यक्ति मौलिक अथवा रचनात्‍म्‍क कर्ता नहीं बन सकता और जब तक व्‍यक्ति एकनिष्‍ट होकर अपने मन को किसी एक बिन्‍दु पर एकाग्र नहीं कर लेता वह अपने जीवनोदेश्‍य को नहीं प्राप्‍त कर सकता है।
स्‍वेट मार्डेन

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