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बहुमुखी प्रतिभा के धनी अमीर ख़ुसरो एक महान सूफी संत थे जो कवि, साहित्यकार, लेखक और शायर भी थे। एक ही व्यक्ति के पास इतने गुणों का होना लगभग असंभव जान पड़ता है, किंतु जब हम अमीर ख़ुसरो की काव्य रचनाओं, जीवन-वृत्त व व्यक्तित्व पर नजर डालते हैं, तो उनके गुणी व प्रज्ञावान होने के साक्षी स्वयं ही उपस्थित हो जाते हैं। तब यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं होता कि वे तो गुणों की खान थे।
अमीर ख़ुसरो ने भारत की धरती को न केवल दिल से अपनाया बल्कि उसकी मान-प्रतिष्ठा को विदेशियों के बीच पहुंचाने के भी अथक प्रयत्न किए। बादशाह जलालुद्दीन ख़िलजी ने उनकी एक फारसी कविता से प्रसन्न होकर ‘अमीर’ की उपाधि प्रदान की थी। ‘तूती-ए-हिंद’ के नाम से प्रसिद्ध अमीर ख़ुसरो ने सदा एक भारतीय होने पर गर्व प्रकट किया। वे कहते थे:
‘हस्त मेरा मौलिद व मावा व वतन’
(हिंदुस्तान मेरी जन्मभूमि और मेरा देश है)
फारसी कवि होने के बावजूद उन्होंने मातृभाषा हिंदी को पूरा मान दिया व गलियों-कूचों में विचरने वाली हिंदी को शाही दरबारों तक पहुंचा दिया।