Kasturi Kundal Basai
कस्तूरी कुंडल बसै
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कबीर ने बड़ा प्यारा प्रतीक चुना है। जिस पंदिर की तुम तलाश कर रहे हो, वह तुम्हारे कुंडल में बसा है, वह तुम्हारे ही भीतर है, वह तुम ही हो। और जिस परमात्मा की तुम मूर्ति गढ़ रहे हो, उसकी मूर्ति गढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं, तुम ही उसकी मूर्ति हो। तुम्हारे अंतर-आकाश में जलता हुआ उसका दीया, तुम्हारे भीतर उसकी ज्योतिर्मयी छवि मौजूद है। तम मिट्टी के दिये भला हो ऊपर से, भीतर तो चिन्मय की ज्योति है। मृण्यम होगी तुम्हारी देह, चिन्मय है तुम्हारा स्वरूप। मिट्टी के दीये तुम बाहर से हो, ज्योति थोडे़ ही मिट्टी की है। दीया पृथ्वी का है, ज्योति आकाश की है दीया संसार का है, ज्योति परमात्मा की है।
ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदुः
- काम, क्रोध और लोभ से मुक्ति के उपाय
- मान और अभिमान में क्या फर्क है?
- श्रद्धा का क्या अर्थ है?
- संकल्प का क्या अर्थ है?
- धर्म और संप्रदाय में क्या भेद है?
- जीवन का राज कहां छिपा है?
Additional information
Author | Osho |
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ISBN | 9789351656326 |
Pages | 148 |
Format | Paperback |
Language | Hindi |
Publisher | Diamond Books |
ISBN 10 | 9351656322 |