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लोकमान्‍य तिलक

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वह एक पारम्‍परिक सनातन धर्म को मानने वाले हिन्‍दू थे। उनका अध्‍ययन असीमित था। उनके द्वारा किये गए शोधों से उनके गहन-गम्‍भीर अध्‍ययन का परिचय मिलता है। अपने धर्म में प्रगाढ़ आस्‍था होते हुए भी उनके व्‍यक्तित्‍व में संकीर्णता का लेशमात्र भी नहीं था। अस्‍पृश्‍यता के वह प्रबल विरोधी थे। इस विषय में एक बार उन्‍होंने स्‍वयं कहा था कि जाति-प्रथा को समाप्‍त करने के लिए वह कुछ भी करने को तत्‍पर हैं। महात्‍मा फुले जैसे ब्राह्मण विरोधी व्‍यक्ति ने उनके व्‍यक्तित्‍व से प्रभावित होकर ही कोल्‍हापुर मानहानि मुकद्मे में उनके लिए जमानत करने वाले व्‍यक्ति की व्‍यवस्‍था की थी। वह विधवा-विवाह के भी समर्थक थे। एक अवसर पर उन्‍होंने स्‍वयं कहा था कि कहने पर से विधवा-विवाह को समर्थन नहीं मिलेगा। यदि कोई वास्‍तव में इसे प्रोत्‍साहन देना चाहता है, तो उसे ऐसे अवसरों पर स्‍वयं उपस्थि‍त रहना चाहिए और इनमें दिए जाने वाले भोजों में अवश्‍य भाग लेना चाहिए। निश्‍चय ही तिलकअपने समय के सर्वाधिक आदरणीय व्‍यक्तित्‍व थे। लेखिका मीना अग्रवाल ने तिलक के विलक्षण व्‍यक्तित्‍व व कृतित्‍व तथा स्‍वतंत्रता आंदोलन में उनके महत्‍वपूर्ण योगदान के बारे में प्रमाणिक विवरण इस पुस्‍तक में प्रस्‍तुत किया है।

लोकमान्‍य तिलक

Additional information

Author

Meena Agarwal

ISBN

812880877X

Pages

136

Format

Paperback

Language

Hindi

Publisher

Diamond Books

ISBN 10

812880877X