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चाहे खेल हो, कोई उद्योग हो, विज्ञान हो, खाद्य हो, शिक्षा हो या धर्म की बात हो, मनुष्य हर संभव क्षेत्र में जानवरों की जमकर दुर्गति करता है। जानवरों को लहूलुहान करने में मानव जरा भी संकोच नहीं करता। अजीब विडंबना है कि पूरी मनुष्य-जाति एक ओर प्रेम की बात करती है, दूसरी ओर विचारहीन संहार। अपने स्वार्थ, लालच व अज्ञानतावश मनुष्य जल्लाद से भी बदत्तर होता जा रहा है।
यह पुस्तक चेहरे ओढ़े हुए मानव की दिल दहला देने वाली काली घिनौनी तस्वीर को प्रमाणिकता के साथ उजागर करती है। साथ ही उन लोगों का भी उल्लेख इस किताब में किया गया है जो जीवों के प्रति परोपकारी हैं। इसके अलावा हम प्राणी कल्याण हेतु क्या कर सकते हैं, इसके बारे में भी अमूल्य सुझाव दिए गए हैं।
मात्र आर्थिक लाभ उठाने के उद्देश्य से लिखी गई पुस्तकों की तरह यह कोई साधारण किताब नहीं है। अपितु यह पुस्तक एक संदेश, एक उद्घोषणा, एक मिशन है कि पशुओं के साथ भी हम इंसानियत का रिश्ता निभा पाए । यह एक उपेक्षित अनसुनी फरियाद है जीवों के दुःख, दर्द, पीड़ा और बेबसी की, क्योंकि वह खुद बोल नहीं सकते।
यह पुस्तक लेखक के 40 (चालीस) वर्षों के अथक भावनात्मक परिश्रम का परिणाम है, जोकि पाठकों को निश्चित ही सोचने पर विवश कर देगी।
ISBN10-9390960924
Business and Management, Diamond Books, Economics