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अष्टावक्र महागीता भाग 7: समर्पित स्वतंत्रता” में ओशो ने समर्पण और स्वतंत्रता के गहन दर्शन पर विचार किया है। अष्टावक्र के उपदेशों के माध्यम से, ओशो ने यह स्पष्ट किया है कि सच्ची स्वतंत्रता तभी प्राप्त होती है जब व्यक्ति समर्पण की अवस्था में प्रवेश करता है। यह भाग यह समझाने पर आधारित है कि स्वतंत्रता केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक होती है, जो व्यक्ति को अपने अहंकार और बंधनों से मुक्त करती है।
समर्पित स्वतंत्रता का महत्व: ओशो इस पुस्तक में बताते हैं कि समर्पण का अर्थ आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि अहंकार और इच्छाओं से मुक्त होकर एक उच्च स्वतंत्रता को प्राप्त करना है। समर्पित स्वतंत्रता में व्यक्ति जीवन को पूर्ण रूप से स्वीकार करता है और उसे किसी भी प्रकार के बंधनों से मुक्त कर देता है।
अष्टावक्र के विचार: अष्टावक्र के विचारों के अनुसार, समर्पण और स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ओशो ने बताया है कि समर्पण से व्यक्ति को आत्मज्ञान प्राप्त होता है और वह स्वतंत्र हो जाता है। इस भाग में, अष्टावक्र ने आंतरिक मुक्ति का मार्ग दिखाया है, जो बाहरी स्वतंत्रता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
यह ओशो की व्याख्या है जिसमें अष्टावक्र और जनक के संवादों के माध्यम से समर्पण और स्वतंत्रता का गहन अर्थ समझाया गया है।
ओशो ने बताया है कि सच्ची स्वतंत्रता समर्पण के माध्यम से प्राप्त होती है, जहां व्यक्ति अपने अहंकार और इच्छाओं से मुक्त होकर आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में पहुंचता है।
ओशो के अनुसार, समर्पण और स्वतंत्रता एक-दूसरे से जुड़े हैं। व्यक्ति समर्पण के माध्यम से ही अपनी आंतरिक स्वतंत्रता को प्राप्त कर सकता है
अष्टावक्र का दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह व्यक्ति को अपने भीतर की यात्रा करने और बाहरी बंधनों से मुक्त होने की दिशा में मार्गदर्शन करता है
इस भाग में उनके संवाद का मुख्य सार यह है कि समर्पण के माध्यम से ही सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।
ओशो ने बताया है कि समर्पण अहंकार के त्याग से प्राप्त होता है। जब व्यक्ति अपने अहंकार का त्याग करता है, तो वह स्वतंत्रता प्राप्त करता है।
Weight | 424 g |
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Dimensions | 19.8 × 12.9 × 0.2 cm |
Author | Osho |
ISBN | 8184190069 |
Pages | 96 |
Format | Hard Bound |
Language | Hindi |
Publisher | Fusion Books |
ISBN 10 | 8184190069 |
जीवन तो जैसा है वैसा ही रहेगा। वैसा ही रहना चाहिए। हां, इतना फर्क पड़ेगा… और वही वस्तु: ‘आमूल क्रांति’ है। आमूल का मतलब होता है: ‘मूल से’! …आमूल क्रांति का अर्थ होता है: जो अब तक सोये-सोये करते थे, अब जाग कर करते हैं। जगाने के कारण जो गिर जाएगा, गिर जाएगा; जो बचेगा, बचेगा—लेकिन न अपनी तरफ से कुछ बदलना है, न कुछ गिराना, न कुछ लाना। साक्षी ही मूल है!
‘मैं वस्तुतः तुम्हें भूलता कह रहा हूं। मैं तुम्हें क्रांति से भी मुक्त कह रहा हूं। मैं तुम्हें यह कह रहा हूं: वे सब कुछ करने की बातें ही नहीं हैं। तुम जैसे हो—भले हो, अच्छे हो, शुभ हो, सुंदर हो। तुम इसे स्वीकार कर लो। तुम जीवन की सहजता को व्यर्थ की बातों से बिगड़ने मत करना। बिध्नित होने के उपाय मत करो, पागल मत बनो
ISBN10-8184190069
Books, Diamond Books, Family Health