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अष्टावक्र के ये सूत्र अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव-स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से
समझना ।ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो, कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि सुनोगे तो ही सुना। ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेंगी, अकेले कान में नहीं, तो ही पहुंचेंगी तुम तक। तो बहुत मौन से, बहुत ध्यान से… ।
इन बातों में कुछ मनोरंजन नहीं है । ये बातें उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन मूढ़ता है। ये बातें उनके लिए हैं जो प्रौढ़ हो गए हैं। जिनका बचपना गया; अब जो घर नहीं बनाते हैं; अब जो खेल-खिलौना नहीं सजाते; अब जो गुड्डा-गुड्डियों का विवाह नहीं रचाते; अब जिन्हें एक बात की जाग आ गई है कि कुछ करना है-कुछ ऐसा आत्यन्तिक कि अपने से परिचित हो जाएं। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे । अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए।
लेखक के बारे में
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
अष्टावक्र महागीता भाग 8 क्या है?
यह ओशो की व्याख्या है जिसमें अष्टावक्र के संवादों के माध्यम से सुख के वास्तविक स्वभाव और आत्म-साक्षात्कार के महत्व को समझाया गया है।
इस पुस्तक में कौन से मुख्य विषय शामिल हैं?
मुख्य विषयों में सुख का स्वभाव, आंतरिक शांति, आत्म-साक्षात्कार, और जीवन के द्वंद्वों से मुक्ति शामिल हैं।
ओशो ने सुख के स्वभाव को कैसे समझाया है?
ओशो ने बताया है कि सुख का स्वभाव हमारे भीतर ही स्थित है, और इसे बाहरी चीजों में ढूंढने के बजाय, हमें आत्मा की गहराइयों में जाकर इसे अनुभव करना चाहिए।
सुख और शांति का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
ओशो के अनुसार, सुख और शांति हमारे स्वभाव का अभिन्न अंग हैं, और जब हम आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में होते हैं, तभी इनका सच्चा अनुभव होता है।
अष्टावक्र का दृष्टिकोण आज के समय में कैसे प्रासंगिक है?
अष्टावक्र का दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह व्यक्ति को बाहरी सुखों से परे जाने और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से सच्चे सुख की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
अष्टावक्र महागीता में सुख का क्या अर्थ है?
अष्टावक्र महागीता में सुख का अर्थ हमारे आंतरिक स्वभाव से है, जो तब प्रकट होता है जब हम जीवन के द्वंद्वों से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में होते हैं।