अष्टावक्र की गीता को मैंनें यू ही नहीं चुना है। और जल्दी नहीं चुना है; बहुत देर करके चुना है- -सोच-विचार के। दिन थे जब मैं कुष्ण की गीता पर बोला, क्योंकि भीड़-भाड़ मेरे पास थी। भीड़-भाड़ के लिए अष्टावक्र गीता का कोई अर्थ न था। बड़ी चेष्टा करके भीड़-भाड़ से छुटकारा पाया है। अब तो थोड़े-से विवेकानंद यहां हैं। अब तो उनसे बात करनी है, जिनकी बड़ी संभावना है। उन थोड़े-से लोगों के साथ मेहनत करनी है, जिनके साथ मेहनत का परिणाम हो सकता है। अब हीरे तराशने हैं, कंकड़-पत्थरों पर यह छैनी खराब नहीं करनी। इसलिए चुनी है अष्टावक्र की गीता। तुम तैयार हुए हो, इसलिए चुनी है।
पुस्तक का परिचय:
अष्टावक्र महागीता भाग 2 जीवन के दुख और मुक्ति के गहन रहस्यों को उजागर करती है। अष्टावक्र के उपदेशों के माध्यम से यह पुस्तक आत्मज्ञान और शांति की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
अष्टावक्र के उपदेश:
इस पुस्तक में अष्टावक्र गीता के प्रमुख सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन है, जिसमें जीवन के दुख, इच्छाओं और अहंकार से मुक्ति पाने के उपदेश शामिल हैं।
दुख का मूल और समाधान:
पुस्तक में यह समझाया गया है कि हमारे दुख का मुख्य कारण हमारी गलत धारणाएँ और भ्रम हैं। इसे दूर करने के लिए आत्म-चिंतन, ध्यान, और आत्मज्ञान की आवश्यकता होती है।
मुक्ति का मार्ग:
अष्टावक्र गीता के उपदेशों के अनुसार, जीवन में मुक्ति पाने का मार्ग अहंकार से मुक्ति, आत्मज्ञान, और ध्यान में है। यह पुस्तक उन सिद्धांतों को विस्तार से समझाती है।
क्यों पढ़ें अष्टावक्र महागीता भाग 2:
जो लोग आत्मज्ञान और मुक्ति की तलाश में हैं, उनके लिए यह पुस्तक एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। यह पुस्तक दुख के कारणों को समझने और जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त करने के उपाय बताती है।