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अष्टावक्र महागीता भाग 8: सुख स्वभाव” में ओशो ने जीवन के असली सुख के स्वभाव को समझाया है। अष्टावक्र के संवादों के माध्यम से ओशो बताते हैं कि सुख कोई बाहरी अनुभव नहीं है, बल्कि यह हमारे स्वभाव में होता है। इस भाग में बताया गया है कि जब व्यक्ति अपने वास्तविक स्वभाव को समझता है और उसे स्वीकारता है, तब उसे सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।
सुख स्वभाव का महत्व: ओशो इस पुस्तक में स्पष्ट करते हैं कि सुख का स्वभाव हमारे भीतर ही है, और इसे बाहर की चीजों या घटनाओं में तलाशने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने अष्टावक्र के उपदेशों के आधार पर यह बताया कि सुख की अनुभूति तब होती है, जब हम अपनी आत्मा के साथ एकत्व में होते हैं और मन, इच्छाओं, और बंधनों से परे होते हैं।
अष्टावक्र के विचार: अष्टावक्र का दृष्टिकोण यह है कि सुख स्वभाव का ही एक रूप है, और यह तब प्रकट होता है जब व्यक्ति जीवन के द्वंद्वों से मुक्त होकर अपने भीतर की शांति में स्थिर होता है। ओशो ने इस भाग में यह समझाया है कि सच्चा सुख किसी भी बाहरी घटना या वस्तु पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह आत्मा की गहराई में होता है
ओशो एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू रहे हैं, जिन्होंने ध्यान की अतिमहत्वपूर्ण विधियाँ दी। ओशो के चाहने वाले पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। इन्होंने ध्यान की कई विधियों के बारे बताया तथा ध्यान की शक्ति का अहसास करवाया है।हमें ध्यान क्यों करना चाहिए? ध्यान क्या है और ध्यान को कैसे किया जाता है। इनके बारे में ओशो ने अपने विचारों में विस्तार से बताया है। इनकी कई बार मंच पर निंदा भी हुई लेकिन इनके खुले विचारों से इनको लाखों शिष्य भी मिले। इनके निधन के 30 वर्षों के बाद भी इनका साहित्य लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है। ओशो दुनिया के महान विचारकों में से एक माने जाते हैं। ओशो ने अपने प्रवचनों में नई सोच वाली बाते कही हैं। आचार्य रजनीश यानी ओशो की बातों में गहरा अध्यात्म या धर्म संबंधी का अर्थ तो होता ही हैं। उनकी बातें साधारण होती हैं। वह अपनी बाते आसानी से समझाते हैं मुश्किल अध्यात्म या धर्म संबंधीचिंतन को ओशो ने सरल शब्दों में समझया हैं।
यह ओशो की व्याख्या है जिसमें अष्टावक्र के संवादों के माध्यम से सुख के वास्तविक स्वभाव और आत्म-साक्षात्कार के महत्व को समझाया गया है।
मुख्य विषयों में सुख का स्वभाव, आंतरिक शांति, आत्म-साक्षात्कार, और जीवन के द्वंद्वों से मुक्ति शामिल हैं।
ओशो ने बताया है कि सुख का स्वभाव हमारे भीतर ही स्थित है, और इसे बाहरी चीजों में ढूंढने के बजाय, हमें आत्मा की गहराइयों में जाकर इसे अनुभव करना चाहिए।
ओशो के अनुसार, सुख और शांति हमारे स्वभाव का अभिन्न अंग हैं, और जब हम आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में होते हैं, तभी इनका सच्चा अनुभव होता है।
अष्टावक्र का दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह व्यक्ति को बाहरी सुखों से परे जाने और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से सच्चे सुख की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।
अष्टावक्र महागीता में सुख का अर्थ हमारे आंतरिक स्वभाव से है, जो तब प्रकट होता है जब हम जीवन के द्वंद्वों से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की अवस्था में होते हैं।
Author | Osho |
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ISBN | 8184190077 |
Pages | 576 |
Format | Hard Bound |
Language | Hindi |
Publisher | Fusion Books |
ISBN 10 | 8184190077 |
अष्टावक्र के ये सूत्र अंतर्यात्रा के बड़े गहरे पड़ाव-स्थल हैं। एक-एक सूत्र को खूब ध्यान से समझना।
ये बातें ऐसी नहीं कि तुम बस सुन लो, कि बस ऐसे ही सुन लो। ये बातें ऐसी हैं कि सुनोगे तो ही सुनना। ये बातें ऐसी हैं कि ध्यान में उतरेगी, अकेले कान में नहीं, तो ही पहुंचेगी तुम तक। तो बहुत मौन से, बहुत ध्यान से…
इन बातों में कुछ मनोरंजन नहीं है। ये बातें उन्हीं के लिए हैं जो जान गए कि मनोरंजन बहुत हो चुका। ये बातें उन्हीं के लिए हैं जो प्रोढ़ हो गए हैं। जिनका बचपन गया; अब वे घर नहीं बनाते; अब वे खेल-खिलौने नहीं सजाते; अब वे गुड्डा-गुड़ियों का विवाद नहीं रचाते; अब जिन्हें खूब बाढ़ की जाग आ गई है कि कुछ करना है—कुछ ऐसा आत्मिक कि अपने से परिचय हो जाएं। अपने से परिचय हो तो चिंता मिटे। अपने से परिचय हो तो दूसरा किनारा मिले। अपने से परिचय हो तो सबसे परिचय होने का द्वार खुल जाए।
हरि ओम् तत् सत्
ISBN10-8184190077
Indian Philosophy, Osho, Spirituality
Diamond Books, Books, Business and Management, Economics