जल अमृत तुल्य ही नहीं; बल्कि अमृत से भी कहीं अधिक मूल्यवान सभी प्राणियों के लिए है। जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। जहां जल है, वहीं पर प्रकृति और उसका सुंदर नजारा है। आज पूरा विश्व पेयजल की समस्या से जूझ रहा है। शहरीकरण और आधुनिकीकरण की वजह से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने के कारण ही धरती का जल स्तर दिन-प्रतिदिन घटता जा रहा है। वायु प्रदूषण और जगह-जगह पर कचरा जमा होने के कारण धरातल भी प्रदूषित हो गया है, जिसमें भू-जल में नाना प्रकार के विजातीय तत्व उत्पन्न हो गए हैं, जिन्होंने पानी को विषैला बना दिया है। देश के अनेक भागों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा बहुत ज्यादा है, जिससे वहां के लोग पेट संबंधी अनेक रोगों से पीड़ित हैं। दूषित पानी का सेवन करने की वजह से ही टाइफाइड की शिकायत होती है। जल को इसलिए भी जीवन माना गया है क्योंकि जहां स्वच्छ जल नहीं है, वहां स्वस्थ जीवन की कल्पना करना ही मूर्खता है। प्रस्तुत पुस्तक जल के महत्त्व का उल्लेख करती हुई जल की बचत और सक के बारे में भी शिक्षित करती है।.
ISBN10-938827489X
Diamond Books, Diet & nutrition